SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीलंका की कला में बौद्ध धर्म का वैश्विक अवदान साथ-साथ 'मृग' और 'व्याघ्र' का भी चिंत्राकन किया जाता था। मांगलिक पक्षियों में शुक, मयूर, हंस आदि के सजीव चित्रांकन का उल्लेख प्राप्त होता है।' चित्रकारों के द्वारा वनस्पति-जगत के चित्रों में भी रुचि दर्शाते हुए कदली-स्तम्भ, चित्रलता के साथ-साथ जलपूर्ण घटों को मांगलिक चित्र के रूप में बनाने का भी उल्लेख प्राप्त होता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि बुद्ध, धर्म और संघ की समृद्धि में लंकाद्वीप के अनेकानेक शासकों व उसके पदाधिकारियों के साथ-साथ सामान्यजनों ने भी योगदान दिया और अनेक स्तूप, चैत्य, स्तम्भ और विहारों के साथ-साथ ऐसे अनेक निर्माण कार्य किए जो बौद्ध धर्म से अनुप्राणित थे। भगवान बुद्ध के पूर्व जीवन के कथानकों का प्रदर्शन अथवा ऐतिहासिक घटनाओं का उत्कीर्णन उपासकों एवं दर्शकों के मानस पटल पर स्थायी प्रभाव डालता है। भगवान बुद्ध के प्रतीक एवं उनकी प्रतिमा का स्थान-स्थान पर उत्कीर्णन लंका में बौद्ध धर्म के प्रति श्रद्धा को दर्शाता है। वंस साहित्य से लंका में कला और धर्म के समन्वय की भी जानकारी प्राप्त होती है। जिसका प्रारम्भिक स्वरूप हमें हड़प्पा संस्कृति से ही मिलने लगता है और जो आद्योपान्त भारतीय संस्कृति की विशेषता रही है। इसी भारतीय वैशिष्ट्य को बौद्ध धर्म ने श्रीलंका में स्थापित किया जिससे दोनों देश एक दूसरे के धार्मिक और सांस्कृतिक बन्धन में बंध गये। वंस-साहित्य में तो वंसकारों ने यह स्वीकार किया है कि श्रीलंकावासो असंस्कृत व असभ्य थे जिनको बुद्ध तथा उनकी परम्पराओं ने सुसंस्कृत व सभ्य बनाया। यह स्वीकारोक्ति हमें रामायण में वर्णित राम व रावण के संघर्षों की याद दिलाता है। वस्तुतः बौद्ध धर्म के कारण ही श्रीलंका और भारत में सांस्कृतिक आदान-प्रदान हुआ वे भारतीय रीति-रिवाज और परम्पराओं के साथ-साथ भारतीय कला के भी ग्रहणकर्ता बनें। सन्दर्भ 1. दीपवंस, अष्टम परिच्छेद, महावंस, षष्ट एवं सप्तम् परिच्छेद 2. अशोक का दूसरा, पंचम और त्रयोदश शिलालेख। 3. वी० स्मिथ, अर्ली हिस्ट्री ऑफ इण्डिया, पृ० 197-99 4. दीपवंस, 8/1-2; महावंस 12/1
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy