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________________ श्रमण-संस्कृति वंस साहित्य के विवरणों से श्रीलंका में अनेक विहार के निर्माण की भी सूचना प्राप्त होती है । विहार निर्माण के कुछ निश्चित धार्मिक नियम थे जिनका अनुपालन आवश्यक था । विहार के निर्माण से ही संघाराम प्रतिष्ठित नहीं हुआ करतमा जब तक उसकी बुद्ध द्वारा अनुमोदित सीमा न बांध दी जाय। इसके लिये संघ में एक जगह एकत्र होकर सभी भिक्षु - भिक्षुणियाँ कर्मवाचा (विनय - पाठ) सुनाते थे जिसे 'एकावास' की संज्ञा दी जाती थी । इसी सीमा के बंधने पर ही कोई विहार स्थाई हो पाता था और वहाँ आवास सुप्रतिष्ठित होता था । दृट्टग्रामणी ने अनुराधपुर में नौ मंजिलों का 'लौह प्रासाद' नामक विहार बनवाया । यह हजारों कूटागारों से मण्डित और एक हजार कमरों से युक्त था । इसकी छत लोहे की खपरैलों से युक्त होने के कारण ही इसे 'लौहप्रासाद' कहा गया 14 देवानांप्रियतिष्य ने 'तिष्याराम विहार', 'स्तूपाराम विहार' और 'चूड़कतिष्य' नामक विहार बनवाया था । राजा अभय 'अभय गिरि विहार' बनवाया तथा उसके पाँच योद्धाओं ने अपने ही नामों पर 'सालियाराम', 'मूलाशय', 'पर्वताराम', 'तिष्याराम' और 'देवागार' नाम विहार बनवाये थे ।" इसी प्रकार राजा थूलसेन ने 'अलकन्दर विहार' राजा लज्जतिष्य ने 'गिरिकुम्भिल', राजा महल्लनाग ने 'साजिल्लकन्दकाराम,' 'दकपाषाणविहार', 'शालिपर्वत विहार', 'तेनेवेल्लिविहार', 'नागपर्वत विहार', और 'गिरिसालि विहार', राजा महाशिव ने 'नंगरांगण', और राजा शूरतिष्य ने हस्तिस्कन्ध, गोगणगिरिक, कोलम्बहालक, मकुलक, अच्छगल्लक, कण्डनगर, गिरिनेलवाहनक विहारों का निर्माण कराया ।" विहारों में ही स्तूपों और चैत्य का भी निर्माण किया जाता था । 24 विहारों में संघ के लिए सभी प्रकार की सुविधाएं और सुरक्षा उपलब्ध थीं । विहारों में पुष्करिणियों (वापियों) तथा तड़ाग का भी निर्माण किया जाता था । विहार के चारों ओर प्राकार (परकोटा) के निर्माण का भी उल्लेख प्राप्त होता है 50 प्राकार के साथ-साथ विहारों में 'परिवेण' और 'महपरिवेण' का भी निर्माण किया जाता था ।" भिक्षुणि " के लिए अलग से विहारों का निर्माण किया जाता था । देवानांप्रियतिष्य ने भिक्षुणियों की सुरक्षा के निमित्त 'उपासिका विहार' और 'हस्त्यादक विहार' के साथ साथ 'भिक्षुण्युपाश्रयों' का निर्माण =
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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