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________________ श्रीलंका की कला में बौद्ध धर्म का वैश्विक अवदान पाटलिपुत्र, कश्मीरमण्डल, पहलवी (पल्लव), अलसन्द (यवन), विन्ध्याटवी, बोधिमण्डविहार (बोधगया), वनवास प्रदेश (कर्नाटक), कैलाश आदि स्थानों के मुख्य स्थविर अनेकों भिक्षुओं के साथ भाग लिये थे।” स्तूप की रचना थूपकम्म (स्तूपकर्म) या महाथूपारम्भ (महास्तूपारम्भ) कहलाती थी और निर्माणाध्यक्ष व्यक्ति को 'कम्माधिट्ठायक' (कर्माधिष्ठापक) कहा जाता था। यहाँ स्तूप के निर्माण के लिये राजा द्वारा शिल्पियों का चुनाव अनेक शिल्पकारों में से परीक्षा के उपरान्त किया जाता था। थूपट्ठान या स्तूप के स्थान पर थूप (खम्भा) की प्रतिष्ठा की जाती थी। इसी यूप में परिभ्रमण दण्डक की रस्सी का एक सिरा बांधकर सम्बन्धित अधिकारी स्तूप के लिए आवश्यक भूमि का मापन करता था। स्तूपों के निर्माण के पूर्ण हो जाने पर उसका उद्घाटनोत्सव' बड़े ही भव्य तरीके से मनाया जाता था स्तप निर्माण के कार्य में सर्वप्रथम नींव का निर्माण किया जाता था। स्तूप निर्माण के लिये गोल पत्थरों (गुल पासाण के) को योद्धाओं (सैनिकों) से मंगवाया जाता था। उन्हें वे हथौड़ों से खण्ड-खण्ड करते थे उसके बाद उसके ऊपर हाथियों के पैरों में चमड़ा मढ़वाकर उनसे मसलवाया जाता था जिससे खण्ड-खण्ड पत्थर के टुकड़े महीन भस्सी बन जाती थी। इस प्रकार सात हाथ गहरे गड्डे को पत्थर की बजरी और भस्सी के महीन रेत से भरवाकर स्तूप के लिये पक्की नींव या भूमि निर्मित की जाती थी उसके ऊपर 'नवनीत मतिका' (मक्खन मिट्टी या चिकनी मिट्टी) नामक अत्यन्त महीन और विशेष रूप से तैयार की गयी चूने जैसी मिट्टी या मसाले का पलस्तर किया जाता था । वज्र एवं सुगन्धित लेप मिट्टी (मत्तिका), ईंट का पीसा चूर्ण (इट्टका चूर्ण), चूना (खरसुधा), कुरुविन्द चूर्ण (मृदु प्रस्तर), मोरम्ब (मरुम्ब), स्फटिक, शीरा (रसोदक), कैथ या बेल का गूदा (कपित्थस्स), तिल के तेल, मनसिल (मनोसिलाय) को मिलाकर बनाया जाता था। इस प्रकार के वज्र के लेप का उल्लेख विष्णुधर्मोत्तर पुराण में भी प्राप्त होता है। कनिंघम महोदय को इस प्रकार से निर्मित फर्श भरहुत स्तूप के नीचे से मिला था।" महास्तूप के मूल भाग के पूर्ण हो जाने के बाद उसे नाना भांति के अभिप्रायों और अलंकरणों से अलंकृत किया जाता था, जैसे - अष्ट मांगलिक चिह्न (अट्ठमंगलक-कदली स्तम्भ, जलपूर्ण घट, शस्त्रयुक्त योद्धा, सिर पर
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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