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________________ श्रीलंका की कला में बौद्ध धर्म का वैश्विक अवदान के प्राणियों पर अनुकम्पा करते हुए तथा उनमें बुद्ध शासन के प्रति श्रद्धा को सुदृढ़ करने हेतु वहाँ धर्म-प्रचार के लिए प्रस्थान करें। इसी आदेश के अनुपालन में महेन्द्र, इट्ठिय, उत्तिय, सम्बल और भद्रशाल लंका के शासक देवानाम्प्रिय तिष्य के शासन काल में लंका पहुँचे। इस प्रकार यथा विधि बौद्ध धर्म लंका द्वीप में प्रविष्ट हुआ। ये भिक्षु अपने साथ बोधि-वृक्ष की शाखा भी ले गये थे जिसे पूर्ण सम्मान के साथ अनुराधपुर में लगाया गया। महेन्द्र को अपने धर्म-प्रचार में अपनी बहन संघमित्रा से भी बड़ा सहयोग प्राप्त हुआ था। प्रेषित भिक्षुओं के नाम और बोधिवृक्ष की कथा भारतीय पुरातत्त्व के साँची स्तुप के अनुसंधान में भी प्रमाणित हो चुका है। गोविन्द चन्द्र पाण्डेय ने भी स्वीकार किया है कि अभिलेखों से भी स्थविरवादियों के द्वारा धर्म-प्रचार के इस प्रयत्न का समर्थन प्राप्त होता है। लंका द्वीप में सभी स्थविरों ने वहाँ की जनता में 'चूलहत्थिपदोपमसुत्त', 'देवदूतसुत्त,' 'बालपण्डितसुत्त,' 'अग्निस्कन्धोपमसुत्त,''अशीविषोपमसुत्त,"अनमग्गियसुत्त, "गोमयपिण्डसुत्त', 'धर्मचक्रप्रर्वतनसुत्त,''महासमयसुत्त',आदि का उपदेश दिया। वस्तुतः महेन्द्र और संघमित्रा के लंका में पहुँचने के बाद से ही दोनों देश आध्यात्मिक रूप से एक हो गये थे। बौद्ध धर्म के प्रचार - प्रसार के सम्बन्ध में भारतीय राजाओं ने जिस प्रकार राज्याश्रय द्वारा बुद्ध-धर्म की सेवा की उसी प्रकार सिंहल देश के राजाओं ने भी बौद्ध धर्म के राजनियोजित प्रचार और प्रसार में योगदान दिया। आदि काल से ही मानव का कला से निकटतम् सम्बन्ध रहा है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में कला प्रारम्भ से ही धर्म से अनुप्राणित रही है। भारतीय कला का सर्वोत्तम वैशिष्ट्य यह है कि वह संस्कार प्रधान होने के कारण धर्म प्रधान बन गई है। वस्तुतः धर्म ही भारतीय कला का प्राण है। चूँकि लंका में भारतीय धर्म (बौद्ध धर्म) जब अपनी जड़ें मजबूत कर लिया तो वहाँ पर भी जिस कला का उद्भव और विकास हुआ वह भी पूर्णतया बौद्ध से ही अनुप्राणित रही। यहाँ पर स्तूप, चैत्य और विहारों के बड़े ही रोचक वर्णन प्राप्त होते हैं। यहाँ की कला असंदिग्ध रूप से बुद्ध, धर्म तथा संघ के प्रति समर्पित थी। स्तूप, विहार और चैत्यों का निर्माण सामान्य जनमानस को बौद्ध धर्म की ओर आकृष्ट करने का साधन भी था। कला धर्म प्रचार का माध्यम भी बन गयी थी।
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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