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________________ 418 श्रमण-संस्कृति धर्म प्रचारक भारतीय संस्कृति और सभ्यता को चीन, मंगोलिया, कम्पूचिया, कोरिया, जापान, म्यामांर, जावा, सुमात्रा, इण्डोनेशिया आदि विभिन्न देशों में ले गये। . शिक्षा के क्षेत्र में तक्षशिला, विक्रमशिला, नालन्दा, श्रावस्ती जैसे विश्वविद्यालयों में चीन, बर्मा, तिब्बत के छात्रों का अध्ययन करना इस बात का प्रमाण है कि भारत की संस्कृति शिक्षा के क्षेत्र में भी किसी से कम न रही। अतः इन विश्वविद्यालयों की प्रसिद्धि बौद्ध शिक्षा की उत्कृष्टता का प्रतीक है। धार्मिक कर्मकाण्डीय विधि और विचार के रूप में प्रतीक समाज के हर स्तर पर व्याप्त हो गये। ये प्रतीक इस प्रकार व्याप्त हुए कि इसकी प्रथा आज तक चली आ रही है। जैसे वटवृक्ष, अश्व, गज, चक्र आदि। अतः भारत में न केवल मूर्तिपूजा, बल्कि वृक्षपूजा, पशुपूजा का प्रचलन हो गया जो वर्तमान में भी महत्वपूर्ण स्थान रखती है। आज भी वृक्ष पूजा मनुष्य के प्राथमिक जीवन का अंग है। हालांकि लगभग एक हजार वर्ष पूर्व विभिन्न कारणों से भारत में बौद्ध धर्म का प्रचलन हो गया लेकिन दक्षिण पूर्व एशिया के प्रायः सभी भागों में ये अब भी एक जीवन्त धर्म है। इस प्रकार बौद्ध धर्म ने भारत में भाषा, दर्शन, वास्तुकला, शिल्पकला, चित्रकला, शिक्षा, मूर्तिपूजा, प्रतीक पूजा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। भारतीय संस्कृति एवं कला में इसके प्रभाव का सदैव अनुभव किया गया तथा इसकी प्रशंसा कर इसको अंगीकार किया गया। बौद्ध धर्म का भारतीय जनजीवन एवं संस्कृति पर आज भी एक जीवन्त प्रभाव है। इस प्रकार बौद्ध संस्कृति अध्यात्मिकता से ओतप्रोत धार्मिक सहिष्णुता और कर्तव्य परायणता को अंगीकृत करती हुई। निरन्तर प्रगति की सोपान पर गतिमान रही है। जीवन के सन्दर्भ में एकता का उद्घोष करती हुई आगे बढ़ती गयी तथा कला को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह करती रही। अतः बौद्ध संस्कृति अतीत, वर्तमान और भविष्य में तादात्म्य स्थापित कर जीवन की समग्रता को उद्घोषित करती रही। इसका प्रभाव वर्तमान समय में स्पष्ट देखा जा सकता है।
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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