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________________ 410 श्रमण-संस्कृति की विवाहित शिक्षमाणा तथा 20 वर्ष से कम की अविवाहित शिक्षमाणा को उपसम्पदा प्रदान करना निषिद्ध था। अयोग्य स्त्रियों को संघ में प्रवेश नहीं दिया जाता था। भिक्षुणी संघ में ऐसी भी स्त्रियों ने प्रवेश लिया था जो व्यक्तिगत आघात या शोक के कारण अपना गृहणी जीवन त्याग दिया। भिक्षुणी संघ का प्रमुख, भिक्षु संघ का प्रमुख ही होता था। भिक्षुओं के समान भिक्षणियों के प्रमुख बुद्ध ही थे। भिक्षुणी संघ में जो भी कार्य होता था वह भिक्षु संघ के सहयोग से होता था। उपसम्पदा प्रक्रिया में अपने से छोटे भिक्षु के प्रति श्रद्धा का भाव रखना पड़ता था भिक्षुणियों के लिये अकेले वनागमन प्रतिबंधित था। भिक्षु-भिक्षुणी के साथ-साथ रहने से किंचित बुराईयों का प्रादुर्भाव हुआ। संघ में प्रवेश के लिए जाति, वर्ग विशेष का बंधन नहीं था, जहाँ सुमना, खेमा जैसी राजघराने की स्त्रियों ने संघ में प्रवेश लिया वहीं अडढकाशी, आम्रपाली जैसी अनुज्जवलभूत स्त्रियों ने भी संघ में प्रवेश किया। संघ में प्रवेश के लिए आवश्यक नहीं था कि वह कुमारी या अविवाहित ही हो। उपसम्पदा की इच्छुक स्त्री को दो वर्षावास तक शिक्षमाणा का जीवन व्यतीत करना पड़ता था। 24 प्रकार के दोषों का उल्लेख मिलता है, जिससे इन भिक्षुणी को दूर रहने की बात कही गई है। शिक्षा का परित्याग कर या अन्य संघों में चले जाने के बाद उस संघ में पुनः प्रवेश सम्भव नहीं था।' उपसम्पदा याचना, दान उपाध्याय - ग्रहण आदि विधियां भिक्षुओं के समान ही थीं। इन भिक्षणियों के लिए उपाध्याया के अतिरिक्त पवत्तिनी शब्द का प्रयोग मिलता है। उपाध्याया को शिक्षमाणा की अवस्था में सेवा अनिवार्य थी, पर भिक्षुणियों के लिए सर्वथा स्थविरता क्रम के नियम का पालन करना अनिवार्य नहीं था। इन भिक्षुणियों को औपचारिक शिक्षा के लिए भिक्षु संघ से शिक्षा लेना आवश्यक था। अधिक उम्र की प्रतिनिधि भिक्षुणी से उपसम्पदा सम्भव था। उपसम्पन्ना भिक्षुणी के लिए आवश्यक था कि वह भिक्षु संघ के उपोसथ एवं प्रवरणा में भाग लें। कालान्तर में इन उपोसथ एवं प्रवरणा में किसी चुनी हुई भिक्षुणी को ही भेजा जाता था। इन भिक्षुणियों को उपोसथ एवं प्रवरणा अस्वीकार करने का अधिकार प्राप्त नहीं था। जब भिछुड़िया आवास दान में मिलने लगें तो उनके लिए यह अनिवार्य अब नहीं रहा कि वे भिक्षओं के साथ ही वर्षावास व्यतीत करें। ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि भिक्षुणियां भी अकेले
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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