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________________ 406 श्रमण-संस्कृति देवता समान हैं और देवों में पूजनीय हैं, उनकी जितनी प्रशंसा की जाय कम है। तीर्थंकर, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव और श्रेष्ठ को जन्म देने वाली महिलाएँ, श्रेष्ठ देवों और उत्तम पुरुषों के द्वारा पूजनीय होती हैं, ऐसी भी कितनी शीलवती स्त्रियाँ सुनी जाती हैं, जिन्हें देवों के द्वारा सम्मान आदि प्राप्त हुआ, तथा जो शील के प्रभाव से शाप देने और अनुग्रह करने में समर्थ थीं। कल्पसूत्र टीका से उल्लेख प्राप्त होता है कि महावीर ने अपनी माता को दुःख न हो इस हेतु उनके जीवित रहते संसार त्याग नहीं करने का निर्णय अपने गर्भकाल में ले लिया था। श्वेताम्बर परम्परा में मल्लिकुमारी को तीर्थंकर माना गया है। ऋषिमण्डल-स्रवन में, ब्राह्मी, सुन्दरी, चन्दना आदि को माना गया है। उत्तराध्ययन एवं दशवैकालिक की चूर्णी में मुनि रथनेमि को” तथा आवश्यक चूर्णी में ब्राह्मी और सुन्दरी द्वारा बाहुबलि को प्रतिबोधित करने का उल्लेख है। समवयांग, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, कल्पसूत्र एवं आवश्यक नियुक्ति आदि में प्रत्येक तीर्थकर की भिक्षुणियों एवं गृह उपासिकाओं की संख्या उपलब्ध होती है। इस तरह से स्पष्ट होता है कि जैन धर्म में सामाजिक जीवन के सन्दर्भ में सूक्ष्मता के साथ चिन्तन किया गया है। जैन तीर्थकरों ने केवल सामाजिक अनुदेश ही नहीं दिया बल्कि उसके साथ ही साथ तार्किक आधार भी प्रस्तुत किया था। सन्दर्भ 1. उत्तराध्ययन सूत्र 25/33 | 2. महापुराण 16/183-1851 3. ऋग्वेद 10/90/12, महाभारत, पूना, 1932 अध्याय 396, श्लोक, 5-6, मनुस्मृति 1/311 4. पद्यपुराण 3/356-258, हरिवंश 9/39। 5. उत्तराध्ययन सूत्र 27/3। 6. उत्तराध्ययन सूत्र 12/11 7. न जातिगर्हिता काचिद्गुणाः कल्याण करणम् व्रतस्थमपि चाण्डाल तं देवो ब्राह्मण विदुः। पद्यपुराण 11/203
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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