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________________ पालि निकायों में व्यापार : संचालन एवं संगठन 377 'महासकट सत्यो' कहा जाता और ये सारी यात्राएँ सुरक्षा की दृष्टि से समूह रूप में की जाती थीं। पालि निकायों में सार्थवाहों के ऐसे छः परिवारों का उल्लेख है जो समूह में व्यापार करते थे और अपने-अपने दल के नेता होते थे जिनका व्यापारिक समुदाय में विशेष सम्मान था। इनमें व्यापारिक लाभ की तीव्र भावना होती जिससे वे मरूभूमि के दुरूह मार्ग को भी पार करने के लिए उत्साहित रहते थे। जब अपने लक्ष्य पर सार्थवाह पहुँचता तो सामान को दुगने-तिगुने दाम पर बेचकर भी मुनाफा कमाते थे और अपने घर को खुशी-खुशी लौटते थे सार्थवाहों के दल का मुखिया पथ-प्रदर्शक का कार्य करता था। वह जंगल से गुजरते समय सभी व्यापारियों को जंगल की विषैली वनस्पतियों की जानकारी देता था तथा यह निर्देश देता था कि उसकी अनुमति के बिना दल का कोई आदमी किसी फल को नहीं खाये। बुद्ध के युग में व्यापारिक एवं व्यवसायिक दृष्टि से काफी उन्नति हो चुकी थी। जातकों में विभिन्न प्रकार के व्यापारिक मार्गों का उल्लेख किया गया है, उत्तर-दक्षिण-दक्षिण, पश्चिम, उत्तर-दक्षिण-पूर्व, पूर्व पश्चिमी आदि अनेक मार्गों का विवरण प्राप्त होता है जिनसे स्पष्ट होता है कि व्यापारिक समृद्धि के लिये यातायात-साधनों का पर्याप्त प्रबन्ध था व्यापारी बड़ी भवों में बिक्री हेतु वस्तुओं को भरकर प्रस्थान करते थे तथा साथ में लिया गया एक तटरक्षक पक्षी (तीरदस्सि सकुणं, उनके सामुद्रिक मार्गों का पथ-प्रदर्शन करता था कभी-कभी इस पक्षी (दिशा काक) द्वारा उनहें तट की भ्रामक सूचना मिलती थी जिससे उनके जहाज डूब जाते और वे अकाल मृत्यु को प्राप्त होते थे। जल परिवहन के लिए उपयुक्त नदियों में गंगा-यमुना, अचिरवती, सरयु, मही आदि का उल्लेख हुआ है और इन्हीं के क्रम में समुद्र की भी चर्चा करके समुद्र व्यापार की पूरी संभावनाओं पर विचार किया गया है जातकों में भारूकच्छ (भड़ौच) की यात्रा करने वाले व्यापारियों का उल्लेख हुआ है जो धन कमाने की इच्छा से इन खतरनाक सामुद्रिक मार्गों को तय करते थे। जिन व्यापारियों की नावें मकरों की शिकार हो जाती उनके धन कमाने के सपने चूर-चूर हो जाते थे। एक जातक के अनुसार, माता द्वारा दी गई एक हजार की चैली से पुत्र ने कुछ ही दिनों में लाख रुपए आसानी से कमा लिये
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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