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________________ बौद्ध वाङमय में महिला विमर्श विमलेश कुमार पाण्डेय गौतम बुद्ध एवं उनके शिष्यों का दृष्टिकोण महिलाओं के प्रति अत्यन्त सकारात्मक एवं क्रान्तिकारी था, जो तत्युगीन सामाजिक परिवेश हेतु असामान्य, उग्र एवं हानि कारक समझा गया था। यद्यपि बौद्ध संघ का सामाजिक गतिविधियों पर प्रभाव नगण्य था तथापि बौद्ध संघ के निर्णयों को समाज अनेकशः प्रभावित कर सकता था। त्रिपिटक के संशोधनों में अभिव्यक्त विचार वैविध्य पूर्ण है। व्यक्तिगत रूप से बुद्ध ने संघ के भीतर महिलाओं को पुरुषों के समान दर्जा प्रदान किया। प्राचीन भारतीय बौद्ध साहित्य में पाये जाने वाले महिला-विरोधी वक्तव्य बिहार के विशिष्ट वर्ग के उन सदस्यों द्वारा बुद्धवचन में जोड़े गये क्षेपक हैं, जिनके महिलाओं के प्रति रुख को, कम-से-कम कुछ सीमा तक, विभिन्न ऐतिहासिक परिस्थितियों ने आकार प्रदान किया।' पालि त्रिपिटक का बड़ा भाग तृतीय बौद्ध संगीति में संकलित हुआ प्रतीत हुआ है। बुद्धवचन तय करने के लिए बुलाई गई इस संगीति व इससे पहले की दो संगीतियों में प्रबल उभयकेन्द्रित - पितृसत्तात्मक भिक्षु अपने विचार थोपने में सफल रहे। बुद्ध का युग गंगा नगरीकरण के उद्भव व विकास के साथ-ही-साथ व्यक्तिवाद के उदय और तत्कालीन ब्राह्मण संस्कृति के हाशिये पर सामाजिक व आध्यात्मिक रूप से रह रहे लोगों पर इसके प्रभाव का गवाह था। उभरती हुई सामाजिक व्यवस्था की विद्यमान सामाजिक मूल्यों के बचाव में अभिरूचि बहुत कम थी और ऐसे वातावरण में महिलाएं व निचले सामाजिक तबके के लोग आम तौर पर अपनी पसन्द के धार्मिक लक्ष्य को पाने व प्रकट करने में
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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