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________________ 354 श्रमण-संस्कृति जन्म, विवाह एवं मृत्यु वही थे जो हिन्दुओं के थे। प्रारम्भ में जैन धर्म में स्तूपों की उपासनापद्धति प्रचलित थी किन्तु इस्वी युग के प्रारम्भ में तीर्थकरों को मंदिरों में मूर्तिरूप में प्रतिष्ठित किया जाने लगा तथा मध्य युग के लगभग हिन्दू पूजा पद्धति के समकक्ष पहुंच गयी उसमें पुष्प, दीप, गंध आदि समर्पित किये जाने लगे तथा हिन्दुओं के मुख्य देवता उपाश्रित स्थित में जैनियों के मन्दिर तक पहुंच गये। यद्यपि यह आस्तिकवाद से कोई वास्तविक समझौता नहीं था तदापि जैन सम्प्रदाय हिन्दू धर्म व्यवस्था में सरलता से खप गया और इसके सदस्य अपनी - अपनी पृथक जातियां बनाये रहे। जैनियों का धार्मिक साहित्य रोचक नहीं है और वह बहुधा पाण्डित्य पूर्ण है। जैन ग्रन्थ अहिंसा, प्रेम तथा मानवीय सहानुभूति प्रकट करतें हैं जैसा कि महावीर द्वारा गौतम नामक शिष्य से कही गयी ये पंक्तियां सिद्ध करती हैं - जिस प्रकार पका हुआ पत्ता जब उसका समय हो जाता है वृक्ष से गिर पड़ता है ऐसे ही मनुष्य का जीवन है गौतम, तुम सदैव सावधान रहना।। उत्तराध्यायन सूत्र
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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