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________________ 341 अशोक के अभिलेखों की भाषा पर बौद्ध धर्म का प्रभाव गिरनार) तो इन आदेशों को वहाँ की बोली में रूपान्तरित कर दिया जाता था। परन्तु यह रूपान्तर बहुत सावधानी से नहीं हुआ है। जहाँ पर दरबारी भाषा या राजभाषा में अन्तर नहीं है, वहाँ पूर्वी में लेख लिखे गये। जैसे-कलसी, प्रयाग, सारनाथ, लौरिया, रूमिनदेयी, बराबर पहाड़ी इत्यादि। भगवान बुद्ध जो अपने को कौशल खत्तिय कहते थे, उनकी भी भाषा पूर्वी थी। कोशल, काशी की मगध की भाषा भी यही पूर्वी थी। अशोक, चन्द्रगुप्त की भाषा भी पूर्वी ही थी। सिल्वा लेबी ने सिद्ध किया है कि प्राचीनतम् बौद्ध आगमों की रचना पूर्वी प्राकृत में हुयी थी, न कि पूर्वी पालि में। अशोक जब बौद्ध ग्रन्थों को उद्धृत करता है, तो वह उसी पूर्वी प्राकृत के संस्करण के उदाहरण देता है, न कि पालि संस्करण के। अशोक के समय में तीसरी प्राकृत दक्षिण पश्चिम की है, जो गिरनार में मिली है। मौर्य काल में आर्य भमि के बोलचाल की भाषाओं की मोटे तौर पर ऐसी ही स्थिति थी। अशोक के पूर्व ही प्राकृत को बौद्ध आगमों में इसके रूपान्तरण से साहित्यिक रूप मिल चुका था। अतः अशोक ने अपने अभिलेखों में उसी का प्रयोग किया। छठी शताब्दी ईसा पूर्व जब बुद्ध ने पूर्वी प्राकृत में अपने उपदेश दिये। तबसे यह धार्मिक साहित्य का एक महत्वपूर्ण माध्यम बन गयी। यद्यपि यह प्राचीन भाषा का ही एक विकसित रूप थी। मौर्यो के काल में बौद्ध व जैन धर्म, दोनों धर्म व दरबार अथवा साम्राज्य की सरकारी भाषा के रूप में इसकी प्रधानता हो गयी। परन्तु मौर्य समाज के पतन के साथ-साथ इसकी प्रधानता का अन्त हो गया। बुद्ध ने यह कहकर कि सभी जातियां अपनी-अपनी भाषाओं में मेरे उपदेश को धारण करें, विश्व की सभी भाषाओं को प्रतिष्ठा प्रदान की। उनकी यह घोषणा भाषाओं के लिए महान अधिकार पात्र हैं। किसी भी भाषा का विकास उसकी रचनाओं को लिपिबद्ध होने के बाद ही होता है। जो बौद्ध ग्रन्थ आरम्भिक काल में कोशल व मगध में रचे गये थे, उसकी भाषा प्राकृत थी। यह अशोक के आदेश लेखों तक ही सीमित है। सन्दर्भ 1. भारतीय लिपियों की कहानी, गुणाकर मूले, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली।
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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