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________________ जैन धर्म के अहिंसा - सिद्धान्त का ब्राह्मण परम्परा पर प्रभाव 5 ऐसा माना जाता है) गीता में यज्ञ का पूर्ण विरोध तो नहीं किया लेकिन सबसे उत्तम यज्ञ उसे बताया जिसमें किसी जीव की हिंसा नहीं होती तथा मनुष्य अपना जीवन परोपकार में लगा देता है। इस 'पुरुष यजन विद्या' को कृष्ण ने अपने गुरु आंगिरस से सीखी थी। भगवद् गीता में वैष्णव धर्म का जो रूप है उस पर जैन, बौद्ध धर्मों का प्रभाव परिलक्षित होता है। महावीर, बुद्ध से पूर्व तेइसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने अपने चातुर्याम संवर संवाद में सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह के साथ अहिंसा को सर्वसाधारण के आचार हेतु प्रस्तावित किया, इसके पूर्व अहिंसा केवल तपस्वियों के आचार में सम्मिलित थी। जैन बौद्ध धर्म की अहिंसा का प्रभाव वैष्णव, शैव धर्म पर पड़ा तो दूसरी ओर रक्त रंजित युद्धों के माध्यम से अपनी विजय पिपासा को शान्त करने वाले राजा भी इससे अछूते नहीं रह सके। इन राजाओं में मौर्य सम्राट अशोक वह पहला राजा है जिसने कलिंग युद्ध के भीषण नर संहार के पश्चात् अहिंसा की नीति का अवलम्बन किया। रण घोष के स्थान पर धम्म घोष, पशुवध निषेध, वाक् संयम, समवाय की अच्छाइयों की वकालत अपने प्रज्ञापनों में करता दिखाई देता है। इसीलिए कुछ इतिहासकार अशोक की 'अहिंसा नीति' को उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं। इन राजाओं में प्रथम शताब्दी ई० पूर्व का शासक खारवेल परम जैन था। हाथी गुम्फा अभिलेख में इसकी तुलना उस पौराणिक राजा वेन से की गयी है जो पहले वर्णाश्रम धर्म का पोषक था लेकिन बाद में अहिंसावादी जैन धर्म को अपना लिया था इसलिए पुराणों में इसकी निन्दा की गयी है। खारवेल को राजर्षियों की परम्परा का अनुवर्तन करने वाला, भिक्षु राज, चौसठ अंगों वाले वाद्य यंत्रों से शान्ति घोष करने वाला भी कहा गया है, जो उसकी उदारवादी दृष्टि का प्रमाण है। इन बौद्ध, जैन मतावलम्बी शासकों के अतिरिक्त अनेक ऐसे साम्राज्यवादी शासक थे, जो यह कहते दिखाई देते हैं कि रणभूमि को छोड़कर सामान्यतया प्राण हिंसा में मेरी कोई रुचि नहीं। यथा शक, पहलव, क्षहरात राजवंशों को निःशेष करने का दावा करने वाला गौतमी पुत्र सातकर्णी यह कहता है कि 'कितापराधे पि सतुजने अ-पाणहिसा रुचिस' अर्थात् अपराध करने वाले शत्रुओं के भी प्राण लेने में मेरी रुचि नहीं है अर्थात् प्रकृत्या मैं अहिंसक हूँ। इसी प्रकार का दावा शक
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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