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________________ 320 श्रमण-संस्कृति बौद्ध धर्म में सारनाथ का अपना विशेष महत्व है। भगवान बुद्ध ने यहाँ पर धर्मचक्र प्रवर्तन नामक अपना प्रथम उपदेश दिया था। यही से प्राप्त संवत् 810 का कलचुरि शासक कर्ण का शिलालेख भी विशेष महत्व का है। इसमें एक बौद्ध धर्मावलम्बी धमेश्वर की पत्नी मामका का उल्लेख है, जो महायान संप्रदाय में दीक्षित थी। मामका ने बौद्ध ग्रन्थ अष्टसहस्रिकाप्रज्ञा की एक प्रति लिखवाकर, यहाँ पर स्थित श्रीषडधर्मचक्रप्रवर्तन महाबोधिमहाविहार के भिक्षुओं को दान में दी थी। यह एक हीनयान संप्रदाय का ग्रंथ था। इसके अनुसार बुद्ध अन्य अर्हतों में श्रेष्ठ समझे गये हैं। इस ग्रंथ में विचार है कि मैं एक आत्मा का दमन करूं और एक आत्मा को निर्वाण की प्राप्ति कराऊं। इस मत में जीवन का लक्ष्य, बुद्धत्व नहीं है, अपितु अर्हत पद की प्राप्ति है। उसने यहाँ के भिक्षुओं से निवेदन किया था कि उसका विहार में नित्य प्रति पाठ होना चाहिये। कलचुरि काल के कतिपय लेखों में बौद्ध धर्म के देवताओं का उल्लेख भी प्राप्त होता है, जैसे - विजय सिंह के संवत् 944 के रीवा अभिलेख में बौद्ध देवता मंजूघोष की प्रशंसा की गई है। मंजूघोष का सम्बंध विद्या से है तथा ये बौद्धों के ज्ञान के देवता हैं। बौद्ध धर्म में छः ध्यानी बुद्ध माने जाते हैं - अमिताभ, अक्षोभ्य, वैरोचन, अमोघसिद्ध, रत्नसंभव और वज्रसत्व। यहाँ पर मंजूघोष को अक्षोभ्य से उत्पन्न बताया है, ये सिंहासन पर बैठे हुए हैं। इनके दाहिने हाथ में कमल पुष्प हैं, किन्तु दूसरे हाथ में पुस्तक नहीं है। इनका दूसरा हाथ व्याख्यान मुद्रा में दिखाया गया है। कहीं-कहीं इन्हें सिंहासन के स्थान पर सिंह पर ललितासन मुद्रा में आरूढ़ विभिन्न आभूषणों से सुसज्जित बतलाया गया है। सरयूपार के कलचुरियों में सोढ़देव का कहला नामक ताम्रपत्र भी बौद्ध धर्म से सम्बंधित है। यह भगवान बुद्ध की निर्वाण स्थली कुशीनगर से प्राप्त होने के कारण भी विशेष महत्व का है। इस अभिलेख में बुद्ध की कृपा प्राप्ति की भी कामना की गयी है। बौद्ध धर्म में तारा का वही स्थान है जो हिंदू धर्म में दुर्गा का है। यह अवलोकितेश्वर के साथ वैसे ही प्रदर्शित हैं जैसे कि शिव के साथ पार्वती।" बौद्ध धर्म में अनेक देवियों का उल्लेख है जो तारा नाम से जानी जाती हैं। जिनमें एक अमोघसिद्धि की शक्ति आर्यतारा है। महाचीनतारा या उग्रतारा का भी उल्लेख प्राप्त होता है जो अक्षोभ्य की शक्ति है। अमोघसिद्धि से उत्पन्न खादिरिवनीतारा, वश्यतारा, षडभुजासिततारा, धनधतारा का भी उल्लेख
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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