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________________ 312 श्रमण-संस्कृति इन दोनों ही अत्तियों का निषेध किया। तथागत ने इस जगत को दुःख के अनन्त प्रवाह के रूप में देखा तथा दुःख की निवृत्ति हेतु चार आर्य-सत्यों-दुःख, दुःख-समुदय, दुःख-निरोध और दुःख-निरोधमार्ग- का उपदेश दिया। चार आर्य सहयों की अवधारणा चिकित्साशास्त्र के चर्तुव्यूहों से प्रभावित प्रतीत होती है। विनय एवं निकायों में पहले सत्य के अन्तर्गत दुःख को व्यापक अर्थ में ग्रहण किया गया है। दूसरे सत्य में प्रतीत्य समुत्पाद अथवा निदानों का, तीसरे में निर्वाण अथवा निरोध का और चौथे सत्य में नाना बोधिपाक्षिक धर्मों का, विशेषतः अष्टांगिक मार्ग का निरूपण हुआ है। ___ महात्मा बुद्ध ने संसार में दुःख की अनिवार्य सत्ता को स्वीकार करते हुए प्रतीत्यसमुत्पाद के माध्यम से दुःख का निदान प्रस्तुत किया। प्रतीत्यसमुत्पाद अविद्याग्रस्त जीवन में दुःख का चक्राकर विकास प्रदर्शित करता है। प्रारम्भ से अविद्या, तृष्णा और कर्म को ही विश्वव्यापी दुःख का कारण माना गया है। किन्तु क्रमशः प्रतीत्यसमुत्पाद के अन्तर्गत द्वादश निदानों की श्रृंखला परिकल्पित हुई। बुद्ध ने दुःख का निरोध निर्वाण में बताया। बुद्धदेशना में एक ओर दुःख - मग्न प्रतीत्यसमुत्पन्न संसार का चित्र है तो दूसरी ओर शान्त, ध्रुव और शोकरहित निर्वाण का। निर्वाण की परिकल्पना एक ओर अर्तक्य और नित्य सत्य के रूप में की गई, जिसमें प्रपंचों का उपशमन हो जाता है तथा संसार का निरोधा - महात्मा बुद्ध ने 'दुःख निरोध - गामिनी प्रतिपदा' के अन्तर्गत संसार से निर्वाण की ओर ले जाने वाले नैतिक और आध्यात्मिक साधना के मार्ग का उपदेश दिया जिसे, 'आर्य अष्टांगिक मार्ग' की संज्ञा दी गई है। आठ मार्गों के रूप में उन्होंने सम्यक् दृष्टि, (वस्तुओं के वास्तविक स्वरूप का ध्यान करना), सम्यक् संकल्प (आसक्ति, द्वेष तथा हिंसा से मुक्त विचार रखना), सम्यक् वाक् (वाणी की पवित्रता और सत्यता), सम्यक् कर्मान्त (दान, दया, सत्य, अहिंसा, आदि सत्कर्मों का अनुसरण), सम्यक् आजीव (सदाचार के नियमों के अनुकूल आजीविका का अनुसरण करना), सम्यक् व्यायाम (नैतिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक उन्नति के लिए सतत् प्रयत्न करते रहना), सम्यक् स्मृति (अपने विषय में सभी प्रकार की मिथ्या धारणाओं का त्याग कर सच्ची
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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