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________________ 310 श्रमण-संस्कृति भारी कहूँ तो बहु डरौं, हलका कहूँ तो झूठा। मैं का जानो राम कुँ, नैनूं कबहूँ न दीठा।। वे बराबर कहे और अनकहे, स्वर और मौन के बीच की मध्य स्थिति का उल्लेख करते हैं। उच्च कुलीनों के ढोंग की आलोचना करते समय वे बौद्धों का उत्साह और वज्रयानियों की तीव्रता अपनाते हुए लगते हैं।' ___ नागार्जुन के खंडनात्मक और प्रहारक शून्यवाद को बुद्ध ने साधना में उतारा और कबीर ने सर्वनिषेधवादी दृष्टि में संसोधन करके उसे रचनात्मक सन्दर्भ प्रदान किए। संदर्भ 1. परशुराम चतुर्वेदी, कबीर साहित्य की परख, पृ० 233 2. डॉ० ओमप्रकाश, कबीर और बौद्ध मत, कबीर-विजेन्द्र स्नातक, 225 3. भक्ति काव्य का दार्शनिक चेतना, नारायण प्रसाद वाजपेयी, पृ० 26 4. वही, पृ० 26 5. कबीर, विजेन्द्र स्नातक, पृ० 225 6. कबीर ग्रंथावली, वचनावली, पृ० 160 7. कबीर, विजेन्द्र स्नातक, पृ० 227 8. कबीर, विजेन्द्र स्नातक, पृ० 229 9. प्रभाकर माचवे, कबीर, पृ० 18 + nom
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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