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________________ श्रमण-संस्कृति चरम स्थिति बौद्ध परम्परा में भी नहीं दिखाई देती। बौद्ध धर्म तर्क संगत, मानव संगत अहिंसा में विश्वास करता था। जैन दर्शन में अहिंसा शरीर तक ही सीमित नहीं है बल्कि वह बौद्धिक, वैचारिक अहिंसा को भी अनिवार्य मानता है, जिसकी चरम परिणति अनेकान्तवाद' में हुई। अनेकान्तवाद का दार्शनिक आधार यह है कि प्रत्येक वस्तु अनेक गुण, धर्म, पर्याय का समुच्चय होती है, इसलिए द्रष्टा का कथन अन्य बातों के सापेक्ष होना चाहिये जिससे भाव हिंसा एवं द्रव्य हिंसा न हो। चिन्तन की इस अहिंसामयी प्रक्रिया का नाम अनेकान्तवाद है उस चिन्तन के अभिव्यक्ति की शैली (Mode of Speech) स्याद्वाद। यद्यपि जैनियों की यह वैचारिक उदारता उनके अपने चिन्तन की परिणति थी लेकिन यहाँ यह कहना असंगत नहीं कि इस प्रकार की दृष्टिगत उदारता का बिम्ब ऋग्वेद के उस मन्त्र में सन्निहित है जिसमें वैदिक ऋषि उद्घोष करता है कि सत्य एक है लेकिन गुण, धर्म, पर्यायगत भेद से उसके अनेक रूप हैं, भगवान बुद्ध ने भी उदान में संगृहीत 'नानातार्किक सुत्त' में कहा है कि सत्य एक ही है दूसरा नहीं ऐसा मानने वाले ही विवाद को जन्म देते हैं। इन सभी साक्ष्यों के साथ यह भी एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि जैन एवं बौद्ध धर्म की जन्म स्थली एवं मूल कर्म स्थली भारत भूमि ही रही है, इसलिए प्रवृत्तमार्ग (वैदिक ब्राह्मण परम्परा) एवं निवृत्तिमार्ग (श्रमण जैन-बौद्ध इत्यादि) में अपनायी गयी दृष्टियों की अन्तरात्मा, दोनों का गन्तव्य एक रहा है: कर्मबन्ध से मुक्ति । अस्तु दोनों धाराओं ने एक दूसरे को प्रभावित किया। प्रस्तुत शोध आलेख में प्रवृत्तिमार्गी ब्राह्मण परम्परा के उन प्रस्थान बिन्दुओं को स्पर्श करने का प्रयास है, जहाँ बीज रूप में अहिंसा' विद्यमान है। युद्ध में रक्तरंजित हिंसा को अपनाने वाले राजाओं के द्वारा भी ‘अहिंसा' के समर्थन के कारकों की पड़ताल तथा किस प्रकार श्रमण परम्परा ने गार्हस्थ्य जीवन से लेकर राजाओं के चरित को प्रभावित किया, इसकी गवेषणा प्रस्तुत शोध पत्र में की गयी है। ___ध्यातव्य है कि जैन धर्म के मूलाधार 'पंच महाव्रतों' (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह एवं ब्रह्मचर्य) में अहिंसा को प्रथम स्थान दिया गया है लेकिन अहिंसा का बीज तत्व वैदिक वाङ्मय में यत्र-तत्र दिखाई देता है। ऋग्वेद के दशवें मण्डल के बाईसवें सूक्त के तेरहवें मंत्र में उल्लिखित है कि
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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