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________________ 288 श्रमण-संस्कृति प्रकार लोलार्क स्थित कुण्ड में जयचन्द गहणवाल ने अक्षय तृतीय को स्नान कर कच्छोहा पट्टनम को लल्लुक नामक शकद्विपीय ब्राह्मण को दिया था। वराहमिहिर स्वयं सम्भवतः शकद्विपीय थे।' अब तक के अध्ययन और उपलब्ध साक्ष्यों से इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि प्राचीन सूर्य प्रतिमाएं प्रायः उन्हीं स्थलों से प्राप्त होती हैं। जहाँ शाकलद्वीपी ब्राह्मण्ध निवास किया करते हैं। प्राचीन काल से ही शाकलद्वीपी ब्राह्मण तन्त्र साधना में अग्रणी रहे हैं। ग्रहों के विषय में उनका अच्छा ज्ञान रहा है। तन्त्र साधना में सूर्य की उपासना महत्वपूर्ण है। यजुर्वेद के अनुसार 'सूर्योpति ज्योतिः सूर्यः स्वाहा' (यजुर्वेद 3/9) (सूर्य की ज्योति है ज्योति ही सूर्य है)। अतः सूर्य और ज्योति अभिन्न है। शाकलद्वीपी ब्राह्मणों का सूर्योपासना से सामीप्य इनके विशेषण युक्त नामकरण से ही स्पष्ट हो जाता है। 'शाकल' शब्द 'शाकल्य' का परिवर्तित रूप है। 'शाकल्य' शब्द का अर्थ हवन सामग्री या 'पुजापा' है। दीपी का अर्थ है दीपवाला। इस प्रकार प्रज्वलित द्वीप है उपासना रूपी यज्ञ में 'शाकल्य' (शाकल) अर्थात् हवन सामग्री जिससे वे शाकलद्वीपी ब्राह्मण कहलाते हैं। सूर्य की उपासना में प्रज्वलित दीप जो सूर्य का ही स्वरूप है का विशेष महत्व है। संदर्भ 1. भारतीय मन्दिर एवं देव मूर्तियां (ओसिया एवं खजुराहो एवं उड़ीसा के मन्दिरों के वास्तुशास्त्रीय सन्दर्भ में खण्ड- 1 एवं 2 डॉ० (श्रीमती) शशिबाला श्रीवास्तव।)
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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