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________________ 284 श्रमण-संस्कृति का अंकन प्रतीत होता है। यही पर किसी प्राचीन मन्दिर में प्रयुक्त होने वाला मकर मुखाकृति से युक्त शिलाखण्ड प्राप्त हुआ है। यहाँ से प्राप्त अवशेषों से ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन काल में इस गांव के दक्षिण पश्चिम हिस्से में एक विशाल सूर्य मन्दिर रहा होगा। राप्ती का तटवर्ती होने के कारण लगता है कि यह मन्दिर राप्ती के बाढ़ से प्रभावित होकर नष्टप्रायः हो गया। प्राचीन काल में यह क्षेत्र सौर सम्प्रदाय से सम्बन्धित था। प्रतिमा के दर्शन के पश्चात् बरबस ही हमारा ध्यान इस ग्राम के नाम 'जसवल' की सार्थकता की ओर आकर्षित हुआ। जसवल 'जस' और 'वल' इन दो शब्दों के संयोग से बना है वस्तुतः यश शब्द का बिगड़ा रूप जस है। यश का अर्थ है ख्याति या प्रसिद्धि का विस्तार जिससे कार्य और प्रभाव का विस्तार हो, जन का कल्याण हो वह शक्ति कहलाती है और इस शक्ति का जनमानस पर पड़ने वाला लोकहित का भाव 'जस' या 'यश' कहलाता है। 'वल' का अर्थ है 'वलय घेराकार या कंकड़ाकृति। सूर्य गोलाकार है वे शक्ति हैं वे ऊर्जा हैं, वे जीवन हैं, उनके बिना स्थावर जंगम कोई भी सष्टि संभव नहीं है। किरणें उनका 'यश' है। सूर्य वृत्त के चतुर्दिक विद्यमान आभामण्डल जो पूरे जगत को अपनी ऊर्जा से अविराम जीवन प्रदान कर रहा है। सूर्य बल अर्थात् शक्ति है क्योंकि बल का एक अर्थ शक्ति भी है। जसवल ग्राम के नामकरण की सार्थकता यहाँ प्राप्त अत्यन्त प्राचीन एवं भव्य सूर्य प्रतिमा से स्पष्ट है। निश्चय ही यहाँ एक भव्य सूर्य मन्दिर रहा होगा जो सम्प्रति अतीत के गर्भ में विलीन हो गया। यह मन्दिर लोगों की आस्था का केन्द्र रहा होगा। उनकी मनोकामना पूर्ति में इस मन्दिर के अधिष्ठाता सूर्य देव सहायक रहे होंगे। अतः उनका यश विस्तार हुआ और परिणामस्वरूप वे यशबली (बलीयशः) की संज्ञा से अभिहित हुए। कालान्तर में यही शब्द अपभ्रंश रूप में लोक में 'जसवल' के नाम से जाना जाने लगा। बालूका पाषाण निर्मित सर्वाभरण अलंकृत सूर्यदेव की द्विभुज प्रतिमा स्थानक समभंग मुद्रा में सप्ताशव रथ पर स्थित है। उनके चरणों के समीप पंगु, अरुण सारथी के रूप में बैठे हैं तथा उनके पीछे महाश्वेता की आभूषणों से अलंकृत प्रतिमा स्थानक मुद्रा में अंकित है। नीचे अश्वनी कुमारों की
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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