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________________ 280 श्रमण-संस्कृति होता है कि वाद-विवाद, शास्त्रार्थ, खण्डन की अत्यधिक स्वतंत्रता प्रत्येक भिक्षु को इन बौद्ध विहारों में दी गयी थी। संघ के सामने औपचारिक रूप से अपने मतभेद रखने की पद्धति के नियम बने थे परंतु संघ का अंतिम निर्णय भी जो कि संघ में मतदान ( शलाका) की बहुसंख्या से निश्चित किया जाता था, व्यक्तिगत मत विश्वास को कुंठित नहीं करता था । इसका दूरगामी सांस्कृतिक परिणाम यह हुआ कि कई बौद्ध विहार धीरे-धीरे विद्यापीठों में परिवर्तित हुए। भिक्षु का अध्ययन केवल बौद्ध ग्रंथों तक सीमित नहीं था अपितु अन्य विषय भी उसे पढ़ाये जाते थे। ई० पू० प्रथम सदी के बाद जब पुस्तक लेखन प्रचलित हुआ ग्रंथों का संग्रह और सुरक्षा भी विहारों में होने लगी। चीनी यात्रियों के वर्णन से ज्ञात होता है कि इन विद्यालयों में विविध बौद्ध पथों के भिक्षुओं के प्रवेश तक ही विद्यार्थियों की संख्या सीमित नहीं थी अपितु कई अदीक्षित बौद्ध विद्या - जिज्ञासु, बुद्धेत्तर मुमुक्षु भी वहाँ प्रवेश पा सकते थे। इन विहारों को बौद्ध धर्म को प्रश्रय देने वाले शासकों तथा बौद्ध धर्म के प्रेमी लोगों द्वारा विभिन्न प्रकार से अनुदान दिया जाता था। पांचवी सदी तक आते-आते इन बौद्ध विहारों का शिक्षण पक्ष अत्यंत विकसित हो गया था। देश के विभिन्न प्रदेशों से विद्वान लोग वहाँ पुस्तकें लिखने के लिए, अध्ययन करने के लिए, सीखने के लिए आते थे । इन विद्यापीठों की कीर्ति दूर के बौद्ध देशों में फैल गयी। इसी कारण से विद्वान यात्री विशेष कर चीनी यहाँ खिंचे चले आये और उन्होंने इन महाविहारों के प्रत्यक्ष दर्शन पर आधारित वृत्तान्त लिखे हैं । प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग (629-646 ई०) ने अपने भारत यात्रा वृत्तान्त में दो विश्वविद्यालयों का उल्लेख किया है - पूर्व में नालंदा और पश्चिम में वलभी । वलभी हीनयानी शिक्षा केन्द्र था । अतः उस ओर उसका अधिक ध्यान नहीं गया, परन्तु नालंदा का उसने विस्तृत वर्णन दिया है, जिसके अनुसार नालंदा एक बहुत बड़ा विश्वविद्यालय था, वहाँ अध्ययन की कई शालाएं थी, कथा, ग्रंथालय थे, व्याख्यानों के लिए प्रवेश और उपस्थिति के नियम थे, अनुशासन के और विद्यार्थियों के व्यवहार के नियम थे, शिक्षण व्यवस्था के लिए विधि - निषेधात्मक नियम थे, नियमों की अवहेलना का पूरा दण्ड विधान था। ह्वेनसांग के अनुसार यहाँ डेढ़ हजार अध्यापक और दस व्याख्यान
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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