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________________ 272 श्रमण-संस्कृति सभ्यता के महान् अन्वेषक सर जान मार्शल का यह विश्वास रहा है कि सिन्धु संस्कृति यज्ञप्रधान वैदिक संस्कृति से सर्वथा भिन्न रही है। उन्होंने मोहनजोदड़ो से प्राप्त कुछ मुहरों पर जैन प्रभाव को इंगित करते हुए लिखा है कि तीन मुहरों पर जैन तीर्थंकरों की कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़े विवस्त्र वृक्ष देवता दिखायी देते हैं। जैन धर्म में मूर्ति पूजा का विधान भाव शुद्धि के लिए किया गया था। तीर्थंकर प्रतिमाएं सांसारिकता में लिप्त मानव समाज को आत्मानुसंधान के लिए प्रेरित करती हैं। भारतवर्ष में जैन मन्दिर एवं मूर्तियां की अनवरत परम्परा को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि सौन्दर्यबोध में अग्रणी जैन समाज अपने आराध्य पुरुषों की पूजा, आत्मशान्ति एवं गुरु भक्ति के लिए मन्दिरों का निर्माण करने में सर्वप्रमुख रहा है। जैन मन्दिर और मूर्तिकला के क्रमिक विकास के अध्ययन से यह महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकलता है कि उदार एवं धर्मनिरपेक्ष शासकों के राज्यकाल में देश समृद्ध होता है और कलाओं के विकास को बल मिलता है। जैन साहित्य और पुरातत्व के आधार पर कहा जा सकता है की जैन धर्म अपनी उदार दृष्टि एवं जीवन मूल्यों के कारण सनातन काल से मानव मात्र के धर्म के रूप में जाना जाता है। भारतीय सम्पदा की दृष्टि से भारतवर्ष का जैन समाज सनातन काल से समृद्ध रहा है। जैनियों की विशेष देन साहित्य एवं कला के क्षेत्र में रही। जैन आगम ग्रन्थ की कुल संख्या 45 है इन ग्रन्थों को छः विभागों में विभक्त किया गया है- ग्यारह अंग, बारह उपांग, दस प्रकीर्ण, छः छेदिसूत्र, चार मूलसूत्र हैं। जैन धर्म का अनेकान्तवाद और स्याद्वाद का सिद्धान्त धार्मिक एवं वैचारिक सहिष्णुता का प्रतीक हैं। जैन मन्दिरों का कलाशिल्प दिलवाड़ा, रणकपुर, पालिताना एवं पावा के मन्दिरों से सुस्पष्ट है। जैन ग्रन्थों में आगम के अतिरिक्त त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरितम्, कुवलयमाला उल्लेखनीय हैं। बौद्ध धर्म का देश की संस्कृति, विचारधारा और जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा है। ढाई हजार साल से भी अधिक समय तक बौद्ध धर्म का इस देश में प्रचलित रहा। इस सुदीर्घ काल में इस धर्म ने यहाँ के सामाजिक जीवन को इतना अधिक प्रभावित किया कि वर्तमान में भी विश्व के अनेक देशों में बौद्ध
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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