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________________ 268 श्रमण-संस्कृति के 'थेरी' शब्द के ही समान था। भिक्षुणी के लिए 'भदन्ती' शब्द का प्रयोग अन्यत्र कहीं नहीं मिलता। यह शिक्षा का भी एक प्रमुख केन्द्र था। विनयघर आर्य पुनर्वसु की शिष्या समुद्रिका का उल्लेख है जिसे उपाध्यायिनी कहा गया है। 20 स्पष्ट है कि भिक्षुणियां विद्या के क्षेत्र में अग्रणी थीं। सम्पूर्ण उत्तरी भारत में किसी भी भिक्षुणी के लिए उपाध्यामिनी शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है। जबकि कुछ भिक्षुणियों को त्रिपिटिका तथा कुछ को सूतातिकिनी कहा गया है अर्थात् वे तीनों पिटकों एवं सूत्रों में पारंगत थीं। अमरावती से ही प्राप्त एक अभिलेख में एक भिक्षुणी बुद्धरक्षिता को नवकम्मक कहा गया है जो विहारों आदि के निर्माण कराने का कार्य करती थी। यहाँ दान देने में भिक्षुणियां भिक्षुओं से आगे थीं। दक्षिण भारत में नागार्जुनीकोण्डा भी बौद्ध भिक्षुणियों का प्रसिद्ध केन्द्र था। परन्तु इसके पश्चात् भिक्षुणी संघ का धीरे-धीरे ह्रास होना प्रारम्भ हो गया। डॉ० अनन्त सदाशिव अल्तेकर का विचार है कि भिक्षुणी संघ चौथी शताब्दी तक समाप्त हो गया था परन्तु उनके इस कथन से सहमत होना कठिन है। बौद्ध भिक्षुणियों के अस्तित्व की सूचना सातवीं - आठवीं शताब्दी तक प्राप्त होती हैं। चीनी यात्रियों फाहयान, ह्वेनसांग एवं इत्सिंग' ने बौद्ध भिक्षुणियों का उल्लेख किया है। इसके अतिरिक्त सातवीं-आठवीं शताब्दी में रचित संस्कृत साहित्य से भी बौद्ध भिक्षुणियों की सूचना मिलती है। बाणभट्ट ने भी बौद्ध भिक्षुणियों के वर्तमान होने का उल्लेख किया है। हर्षवर्धन की बहन राज्यश्री भिक्षुणी होना चाहती थी। आठवीं शताब्दी में भवभूति ने मालतीमाधव नामक नाटक में सौगत परिव्राजिका कामन्दकी का उल्लेख किया है। इसी प्रकार सुबन्धु (जिनका समय कुछ विद्वान हर्ष के पूर्व तथा कुछ पश्चात् बताते हैं) ने अपने वासवदत्ता नामक ग्रन्थ में एक बौद्ध भिक्षुणी का वर्णन किया है। उपर्युक्त उदाहरणों से आठवीं शताब्दी ईस्वी तक बौद्ध भिक्षुणियों के वर्तमान होने की सूचना मिलती है। आठवीं शताब्दी के पश्चात् कोई भी ऐसा
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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