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________________ 258 श्रमण-संस्कृति और उन्होंने अपने सुख कामी भिक्षुओं के आचरण की भर्त्सना की थी। यहाँ पर बौद्ध-शिक्षा के रूप में वैशाली भारत में प्रसिद्ध थी। घोषिताराम 'घोषित' नामक एक श्रेष्ठि द्वारा निर्मित यह विहार कौशाम्बी में स्थित था। इस विहार का नामकरण इसके नाम पर हुआ था। हाल में किये गये यहाँ के उत्खननों से एक अभिलेख प्राप्त हुआ है, जिससे कौशाम्बी की सीमा पर दक्षिण पूर्वी कोने में स्थित इस प्रसिद्ध आयाम की अवस्थिति बतलाने में सहायता मिलती है। यह स्थान यमुना नदी से अधिक दूर नहीं प्रतीत होता है। यह आयम बुद्ध के निर्वाण के पश्चात भी आनन्द का प्रिय आवास था। थेरू उरूथम्मक्खित के नेतृत्व में इस आयम के कोई तीस हजार भिक्षु ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी में राजा टुटठाकामिणी के शासनकाल में लंका गये। जब पांचवीं शताब्दी ई० में फाह्यान कौशाम्बी गया था तथा उसने घोषितयम में अधिकांशतः हीनयान मत के अनुयायी बौद्ध स्थविरों को देखा था। सातवीं शताब्दी ई० में कौशाम्बी जाते युवानच्याड ने देखा कि यहाँ पर पूर्णतः ध्वस्त दस से अधिक संधायम थे। इन दस विहारों में धोषितयम की भी एक था जो कौशाम्बी के दक्षिण पूर्व में स्थित था। अशोक ने घोषितयम के समीप 200 फीट से भी ऊँचा एक स्तूप बनवाया था। पूर्वायम जेतवन के उत्तर पूर्व में श्रावस्ती के समीप स्थित यह एक बौद्ध विहार था, जिसका निर्माण निगार नामक श्रेष्ठि की वधू विशाखा ने करवाया था, जिन परिस्थितियों के कारण इस विहार का निर्माण करवाया गया था, उसका वर्णन धम्मपद भाष्य में किया गया है। इस विहार के निर्माण में लकड़ी एवं पत्थर का प्रयोग किया गया था, जो कि पहली एवं दूसरी मंजिलों में असंख्य कमरों से युक्त एक भव्य दुमंजिली इमारत थी। यह विहार पुष्वायम निगारामातुप्रसाद नाम से विदित था बुद्ध ने निगारमाता के प्रासाद में रहते समय अग्गण्ण सुतांत का प्रवचन दिया था। अशोकायम अशोक द्वारा निर्मित पाटलिपुत्र में एक बौद्ध संस्थान के भवन की
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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