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________________ चतुः वेदिन से दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर के 'पूर्वायतन' 'ज्योत्यायतन' के आचार्य एवं अध्यक्ष प्रो० प्रेमसागर चतुर्वेदी अपने नामिक बिन्दु से विनिर्मित व्यासों की परिधि से विमुक्त होकर ऐतिह्य विस्तार से समुदित संलग्न है । यद्यपि मेरा यह सौभाग्य नहीं रहा कि मैं उनका अनन्य अन्तेवासी बन सका । परन्तु उनके ऋतम्भरा प्रज्ञा से मैं प्रभावित रहा। क्योंकि वे वाक्कायमन से सर्वदा संभृत पुरातत्वातन्वेषणा में संलग्न रहते थे । यही उनके व्यक्तित्व का विभ्राट पक्ष है। चतु: वेदितृत्व प्राप्त प्राज्ञ पुरुष माननीय प्रेम सागर चतुर्वेदी, आचार्य के आसन्दी पर आरूढ़ होने के पश्चात् ही उन्होंने विभाग के छात्र - छात्राओं, प्रवाचकों एवं व्याख्याताओं की ऊनताओं दुरितों को प्रक्षय कर विभाग की क्षयिष्णु स्थित को वर्धिष्णु में रूपान्तरित कर दिया तभी से मेरा तन-मन उनके प्रति अत्यधिक नमनीय बन गया । प्रो० चतुर्वेदी एक तपः पूत ब्रह्मकुल के विभूषण रूप में ब्राह्म मुहूर्त से ही सपरिवार 'तनूपा मंत्रों' का जाप करने के पश्चात् अपने अध्ययन-अध्यापन के दैनिक ब्रह्मोद्य कार्य में रत हो जाते हैं। उनके व्यक्तित्व की विराटता उनकी नियमितता एवं अपने कर्तव्यों के प्रति सतत् सर्जनात्मक सतर्कतता रही हैं । इसीलिए आज वे विभाग के मेरुदण्ड की सुषुम्णा रूप में अमृत उत्स से संस्कृति के निर्झर रूप में सर्वत्र समादृत हैं। ऐतिह्य अध्ययन- अन्वेषणा के विभागीय निरुक्त पुरुष आचार्य प्रोफेसर चतुर्वेदी के प्रभ्राजमान परावरज्ञा के स्नेहासिक्त सुवाचा के संकेतों से ही उनके समित्पाणि छात्र-छात्रायें प्रमुदित एवं पुलकित हैं। क्योंकि विषय सम्प्रश्न के समाधान के नित्य उत्साह - स्फुरण से विभाग एवं विषय अनुदिन रूपम् रूपम् प्रतिरूपम् विस्तृणता को प्राप्त होता जा रहा है। इस समुदित संकेत से हम सभी
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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