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________________ 31 वैदिक संस्कृति एवं बौद्ध धर्म प्रताप विजय कुमार छठी शदी ई० पू० में भारत में कई धार्मिक सम्प्रदाओं का उदय हुआ जिसमें बौद्ध एवं जैन प्रमुख है। ये दोनों सम्प्रदाय बौद्धिक आन्दोलन का रूप गृहण कर चुके थे। भारत में इस आन्दोलन के अनेक प्रत्यक्ष एवं परोक्ष कारण थे, जो तत्कालीन सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तनों की पृष्ठभूमि में निहित थे जिसमें वैदिक परम्परा की धार्मिक एवं सामाजिक मान्यताएँ तथा जीवन पद्धति के अनेक तत्व रूढ़ि बनकर रह गये थे। उत्तर वैदिक काल में यज्ञ की प्रधानता हों गयी थी । शतपथ ब्राह्मण में उल्लेख है कि यज्ञ अग्नि के माध्यम से जंगल को जलाकर वैदिक संस्कृति में लोग प्रसार करते थे । ब्राह्मण ग्रन्थों तथा उपनिषदों से स्पष्ट होता है कि वेदों के मन्त्र देववाक्य के रूप में स्वीकार किये जाते थे । इसलिये उनमें परिवर्तन या परिर्द्धन असंम्भव था तथा मंत्रों के उच्चारण एवं यज्ञ में त्रुटि के भयंकर परिणाम का विश्वास प्रचलित था । इस प्रकार सांस्कृतिक वातावरण में पुरोहित वर्ग को अत्याधिक महत्व मिलना स्वभाविक था जिससे कर्म-काण्ड नीरस जटिल और आडम्बरयुक्त हो गये । वैदिक संस्कृति में यज्ञों को स्वर्गं लें जाने वाली नौका के समान माना गया है और उसी माध्यम से भौतिक और आध्यात्मिक उपलब्धि की कल्पना की गयी है। वैदिक संस्कृति के अन्तर्गत समाज का वर्गीकरण चार वर्णो में हुआ था । यद्यपि वैदिक काल में कर्म के आधार पर वर्ण निर्धारित था, किन्तु बाद में जन्म के आधार पर वर्ण का निर्धारण होने लगा । भारत के कुछ क्षेत्रों में विकसित कृषि के बावजूद मांसाहार के लिये पशु वध होता था और बौद्धकाल की नवीन कृषि प्रणाली में कृषि कार्य के लिये
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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