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________________ 30 बौद्ध साहित्य में चिकित्सा अजय कुमार पाण्डेय अनादि काल से मानव स्वास्थ्य के प्रति सर्वथा सचेष्ट रहा। नियम, संयम एवं यौगिक क्रियाओं के माध्यम से ऋषि-मुनि स्वस्थ के प्रति सजग रहने की दीक्षा दिये । बौद्ध साहित्य में अनेकत्र बौद्ध भिक्षु भिक्षुणियों के अस्वस्थ होने की सूचना विवृत है। स्वयं बुद्ध ने स्वास्थ्य रहने के लिए सतर्क किया, साथ ही साथ अनेक विधि-विधानों के माध्यम से स्वास्थ्य के संदर्भ में संकेत भी दिया। भिक्षु भिक्षुणियों के सामान्य जीवन पद्धति- आहार-व्यवहार में परिवर्तन की आवश्यकता पर बल देते हुए अनेकानेक नियम बौद्ध साहित्य में वर्णित हैं। बौद्ध साहित्य एक स्थान पर अस्वस्थ बौद्ध भिक्षुओं के लिए गो-मूत्र - भैषज्य का अनुयति देता है वहीं अन्यत्र अधिक स्वास्थ लाभ के लिये कच्चे मांस, रक्त एवं मद्य सेवन की अनुमति प्रदान करता है। भिक्षुओं के उपचार हेतु बौद्ध साहित्य में परिचारकों की भी व्यवस्था का उल्लेख है। मुख्यतः विनयपिटक एवं महावस्तु चिकित्सा से सम्बन्धित सूचनाओं को प्रदान करता है। बौद्ध साहित्य में वर्णित है तथागत ( गौतम बुद्ध) श्रावस्ती प्रवास क्रम में अनाथ पिण्डक के जेतवन विहार में निवासरत थे उसी समय भिक्षुगण शरद ऋतु में ठण्ड एवं बुखार से पीड़ित होने की सूचना देते हैं जहाँ स्वल्प भोजन का भी वमन हो जाता है। इस बुखार से पीड़ित भिक्षु कमजोर एवं शक्तिहीन होने लगते हैं। भगवान बुद्ध का हृदय करुणा से भर जाता है वह अपने शिष्य आनन्द से बुखार का कारण पूछते हैं, आनन्द उत्तर देते हैं 'भन्ते भिक्षुगण शरद ऋतु के बुखार से ग्रस्त हैं। उनके द्वारा ग्रहण किया गया यवागू (खिचड़ी) -
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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