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________________ 21 जैन धर्म में कर्म सिद्धान्त अपने कर्म के अनुसार इन चार गतियों में से किसी एक गति में जाकर जन्म ग्रहण करता है। जब जीव एक शरीर को छोड़कर दूसरा शरीर धारण करने के लिये जाता है तब आनुपूर्वी नाम कर्म उसे अपने उत्पत्ति स्थान पर पहुँचा देता है। आनुपूर्वी नाम कर्म के लिये नासारञ्जु अर्थात् नाथ का दृष्टान्त दिया जाता है। जैसे वैल को इधर-उधर ले जाने के लिये नाथ की सहायता अपेक्षित होती है। उसी प्रकार जीव को एक गति से दूसरी गति में पहुँचने के लिये आनुपूर्वी नाम कर्म की मदद की जरूरत पड़ती है। समश्रेणी रज्जुगति के लिये आनुपूर्वी की आवश्यकता रहती अपितु निश्रेणीवक्रगति के लिये रहती है। गत्यन्तर के समय जीव के साथ केवल दो प्रकार का शरीर रहता है; तेजस और कार्मण। अन्य प्रकार के शरीर (ओदारिक अथवा वैक्रिय) का निर्माण वहाँ पहुँचने के बाद प्रारम्भ होता है। 6. बन्ध और मोक्ष- जैन धर्म दर्शन में कर्म सिद्धान्त का प्रतिपादन करते हुए कर्म उपार्जन के दो कारण माने गये है- योग और कषाय। जैन परिभाषा में शरीर वाणी और मन के सामान्य (कर्म-व्यापार) को योग कहते है। अर्थात् प्राणी की सामान्य प्रवृत्ति का नाम 'योग' है। और कषाय केवल मन की गतिविधियाँ अर्थात् क्रोध आदि मानसिक आवेग ही कषाय है। यह सम्पूर्ण जगत् कर्म करने की क्षमता रखने वाले परमाणुओं से भरा है। जब प्राणी तन, मन और वचन से किसी प्रकार की क्रिया करता है, तब उसके आस पास रहते हुए कर्म करने योग्य परमाणुओं का आकर्षण होता है। अर्थात् आत्मा अपने चारों ओर विद्यमान कर्म परमाणुओं को कर्म रूप से ग्रहण करती है। इस प्रक्रिया का नाम आश्रम है। बन्ध - कषाय (मानसिक प्रवृत्तियाँ) के कारण कर्म परमाणुओं का आत्मा के साथ बँध जाना ही बन्ध है अथक बन्धन कहा जाता है। यद्यपि प्रत्येक प्रकार का योग (कर्म प्रवृत्ति) कर्म वधका कारण है किन्तु जो योग क्रोध कषय आदि से युक्त होता है उससे होने वाला कर्म विन्ध दृढ़ होता है। कषाय रहित प्रवृत्ति से होने वाला कर्मवन्ध निर्बल होता है। यह नाम मात्र का बन्ध है। बन्ध परमाणुओं की राशि को प्रदेश बन्ध कहते है। इन परमाणुओं की विभिन्न स्वसावरूप परिणति को अर्थात् विभिन्न कार्य रूप क्षमता को प्रकृतिवन्ध
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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