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________________ 168 श्रमण-संस्कृति बुद्ध काल में ही लोहे के उपकरणों के भारी मात्रा में प्रयोग से गांगाघाटी में अन्न उत्पादन बहुत अधिक बढ़ गया। इस काल में मूठदार कुल्हाड़ियों, फाल, हंसिये आदि का कृषि कार्यों के लिये बड़े पैमाने पर प्रयोग प्रारम्भ हुआ। बौद्ध धर्म के पोषक अशोक के काल में कृषि को हानि पहुंचाने वाले कीड़े-मकोड़ों एवं पशु-पक्षियों को नष्ट करने के लिए राज्य की ओर से गोपालक एवं शिकारी नियुक्त किये गये थे। इस प्रकार उपरोक्त तथ्यों के आलोक में यह कहा जा सकता है कि बौद्ध धर्म के आगमन के साथ प्राचीन भरतीय आर्थिक परिदृश्य में भी तेजी से बदलाव आया एवं पुराने मिथक टूटे। परन्तु एक तरफ जहाँ इस धर्म ने भारतीय अदल-बदल प्रणाली के आधार पर निर्मित आर्थिक व्यवस्था को स्वावलम्बी बनाते हुए उसे कृषि उत्पादन एवं व्यापार वाणिज्य पर निर्भर किया, जिससे आर्थिक परिदृश्य में सुधार हुआ, आम लोगों के जीवन में स्थिरता आई वहीं दूसरी ओर व्यापार व्यवसाय के क्षेत्र में होने वाली अद्भुत प्रगति ने समाज में धन संग्रह को बढ़ावा दिया तथा व्यापारियों के पास अतुल सम्पत्ति अर्जित हो गई। वे अपनी सम्पत्ति के बल पर ही सामाजिक श्रेष्ठता का दावा करने लगे जिससे ऊंच-नीच का भेद-भाव उत्पन्न हुआ। वे इस काल की राजनीतिक दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगे। ___ इस प्रकार कृषि के प्रभूत उत्पादन तथा व्यापार वाणिज्य की अभूतपूर्व प्रगति ने मिलकर परम्परागत कबाइली आधार पर गठित सामाजिक आर्थिक संगठन को समाप्त कर दिया। उत्तर भारत में जनजातियों का काल समाप्त हो गया। लेकिन इन व्यवस्थाओं ने सामाजिक संतुलन को भी बिगाड़ दिया तथा कुलीन एवं निर्धन व्यक्तिओं के जीवन में स्पष्ट अन्तर हो गया। समाज में मध्य वर्ग का उदय हुआ जो नगरों में रहकर सभ्य जीवन बिताने लगे। अतः यह कहना अत्यधिक तर्कसंगत है कि भारतीय सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को कबाइली स्वरूप से बदलकर विकसित रूप में ले जाने का कार्य तो बौद्ध धर्म ने किया लेकिन इस विकास की प्रक्रिया ने बहुत कुछ ऐसे तत्वों को जन्म दिया जिन्होंने समाज में अव्यवस्था फैला दी, जो आज तक विद्यमान है।
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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