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________________ सारस्वत साधनारत प्रो० प्रेम सागर चतुर्वेदी जी परम विद्यानुरागी प्रो० प्रेम सागर चतुर्वेदी जी से मेरा पहला परिचय इलाहाबाद डिग्री कालेज (इलाहाबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय) में प्रवक्ता पद पर सन् 1971 ई० में उनके चयनित होने के फलस्वरूप हुआ। संयोगवश, मैं उस समय प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग का अध्यक्ष था। माननीय स्व० श्री प्रभाकर ठाकुर (प्राचार्य) जी के कक्ष में एक निहायत सुकुमार, अल्पवय, शर्मीले किन्तु परम चैतन्य युवक को अपना सहयोगी प्राध्यापक पाकर मैंने अपने को धन्य समझा। प्राचार्य जी ने बात ही बात में चतुर्वेदी जी के बारे में बताया कि इन्होंने हाई स्कूल परीक्षा से लेकर एम० ए० तक की परीक्षा न केवल प्रथम श्रेणी में बल्कि उत्तमोत्तम अंकों की प्राप्ति के साथ उत्तीर्ण की है। साक्षात्कार में पूछे गए प्रश्नों को जिस सटीकता तथा अल्प शब्दों में श्री चतुर्वेदी जी ने उत्तर दिया, वह मैं एक मानक साक्षात्कार मान सकता हूँ, ऐसा विद्वान् प्राचार्य ने हमें बताया। ठाकुर साहब स्वयं प्राचीन इतिहास विभाग में अध्यक्ष पद संभाल चुके थे तथा वे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में स्व० प्रो० अल्तेकर जी के परम प्रिय छात्र रह चुके थे। उन्हीं दिनों मैं एक साम गुरुदेव स्व० प्रो० जी० आर० शर्मा जी के यहाँ गया हुआ था। वहाँ देखा कि गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष एवं पूर्व कुलपति स्व० प्रो० विश्वम्भर शरण पाठक जी भी विद्यमान थे। प्रो० शर्मा जी ने मुझसे पूछा कि प्रेम सागर कैसा अध्यापक है तथा तुम्हारा उसके बारे में अब तक क्या विचार बन पाया है। मैंने कहा कि चतुर्वेदी जी ठीक 10:00 बजे महाविद्यालय पहुंच जाते हैं तथा अपनी कक्षाओं को बड़ी लगन, तैयारी तथा पूरी तन्यमता के साथ लेते हैं। महाविद्यालय के छात्र उनके शिक्षण-कार्य की बड़ी प्रशंसा करते हैं। यह एक सुखद संयोग ही कहा जा सकता है कि प्रो०
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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