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________________ 156 श्रमण-संस्कृति और फिर जीवनदान के माध्यम से आर्थिक सामाजिक रूप से राष्ट्र का सुदृढ़ करने का प्रयास किया। असंतोष एवं विद्रोह की बुहेलिका में भटवती युवा पीढ़ी तथा राजनीतिक आर्थिक एवं नैतिक अवमूल्यन की स्थिति में राष्ट्र के लिए मूलचूल क्रांतिकारी परिवर्तन हेतु समग्र क्रांति का आह्वान भी किया। जिसमें समाज में अन्याय शोषण आदि का अन्त तथा नैतिक सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक क्रांति का लक्ष्य रखा, उनका कहना था कि समाज के आर्थिक, ढाचे को सुदृढ़ तथा आर्थिक विकास का लक्ष्य व्यक्ति ही होना चाहिए। जय प्रकाश नारायण का समाजवाद किसी विदेशी दर्शन से आयातित नहीं बल्कि भारतीय संदर्भ की उपज थी, उन्होंने अपने सुनिश्चित लक्ष्य के लिए अपने मानसलोक को पूर्णतः मुक्त रखा और जहाँ से भी अनुकूल विचार तत्व अथवा नया प्रकाश दिखा तो जय प्रकाश नारायण ने उसे स्वीकार किया तदनुसार अपनी वैचारिक यात्रा में भी परिवर्तन किया, अतः हम कह सकते हैं कि वे सत्य का ऐसा आग्रही थे जो रूढ़ि का अनुगामी नहीं होता। यह सत्य है कि देश की जनता में विशेष कर लगातार पतनोन्मुख राजनीतिक संदर्भ में उनके लिए विशेष सम्मान था, आपातकाल के बाद वह एक मसीहा की तरह उभर कर समाने आये थे। इतना निर्विवाद है कि वीसवीं शताब्दी के नेताओं में महात्मागांधी के बाद जय प्रकाश नारायण को ही एक साथ प्रशंसा एवं आलोचना मिलती रही है, महात्मा गाँधी की तरह जय प्रकाश नारायण ने भी कोई पद नहीं सम्भाला, इसीलिए नैतिकता और त्याग के महातुला पर गाँधी जैसा वे अतुलनीय रहे। सन्दर्भ 1. सी०एन० चितरंजन, एसेसिंग जे०पी०-रेवाल्यूशनरी ऑफ एसकेपिस्ट 'मेनस्ट्रीम' ___ अक्तूबर 20, 1979 पृ०7 2. विस्तृत अध्ययन के लिए देखें, हवाई सोशियोलिज्म, जय प्रकाश नारायण बनारस आल इण्डिया कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी 1936 3. दी इण्डियन अनुअल रजिस्टर, भाग 11 पृ० 36 4. सम्पूर्णानन्द, मेमोरिज आफ रिफ्लेक्शन एसिया पब्लिसिंग हाउस 1962, पृ० 72 5. वही, पूर्वोक्त पृ० 72
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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