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________________ 20 बौद्ध साहित्य में संगीत अश्विन कुमार सिंह भारत में संगीत का विकास धर्मनिरपेक्ष मनोविनोद के साधन रूप में हुआ है। फिर भी संगीत धर्म की मूल की उक्ति है । सांगीतिक स्वर नाद अथवा ब्रह्म की वास्तविक अभिव्यक्ति करते हैं। इसके द्वारा धार्मिक आराधना की जाती है। यज्ञ रूप में संगीत स्वयं धार्मिक पूजा है। मानव शरीर में ईश्वरीय ज्योति परम सुख और आनंद से परिपूर्ण निस्तब्धता का कोष है योगी जन योगाभ्यास के द्वारा उन दैवी कुण्डलियों के ज्ञान से मोक्ष तथा जीवनोद्धार प्राप्त करते हैं। जब मस्तिष्क और बुद्धि नवीन रचना के लिए एक हो जाते हैं। तभी अनाहत नाद की उत्पत्ति होती है। संगीत शिक्षा मानव को मानव से जोड़ती है। संगीत की भावात्मक एकता एक समाज से दूसरे समाज को जोड़ती है। जोड़ने की शक्ति संगीत की मधुर ध्वनि में है। संगीत की ध्वनियां प्राणि मात्र के स्वरूप को भावात्मकता प्रदान करने में सक्षम हैं। मानव व्यक्तित्व में मन की भूमिका अत्यंत ही महत्वपूर्ण हैं क्योंकि मन मानव के क्रिया-कलापों को प्रभावित करता है। संगीत शास्त्र सामवेद का उपवेद माना जाता है; फलतः वेद के साथ इसका साक्षात् संबंध देखा जाता है। प्राचीन आर्य ऋषि संगीत को मानव मस्तिष्क को शांति प्रदान करने वाला मानते हैं। संगीत प्रेम, कला, करुणा, दया और उदारता का भाव उत्पन्न करने का साधन है। हमारे वैदिक ऋषि संगीत को मानव की आत्मा और मानव शरीर को एक सांगीतिक वाद्य मानते हैं। सांगीतिक स्वर मानवीय दुर्बलताओं से मानव को मुक्ति दिलाते हैं। अतः
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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