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________________ जैन धर्म में यक्षिणियाँ 137 समीप स्थित है। इस क्षेत्र में प्राचीन काल से इन्द्रमह, ब्रह्ममह और यक्षमह की परम्परा विद्यमान रही हैं। उपर्युक्त तथ्य से यह बात स्पष्ट होती है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में अत्यन्त प्राचीन काल से कुलदेवता एवं कुलदेवियों की पूजा लोक कल्याण की भावना से की जाती है। संदर्भ 1. रामायण 2/69/14, द्र० श्रीमदवाल्मीकीय रामायण गीता प्रेस, गोरखपुर, द्वितीय सं० 2024 2. वही, 2/69/16 3. वही, 3/69/15 4. पालिजातक सं० 432, द्र० सर जान मार्शल: मान्यूमेण्ट्स ऑव सांची खण्ड एक, लन्दन, 1940, पृ० 151 5. महावंश, 10/53/61 (महावंश अनु० भदन्त आनन्द कौसलायन, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग सं० 2014, पृ० 53-55) 6. द्र० डॉ० ए० एल० श्रीवास्तव: भारतीय कला सम्पदा 2001, इलाहाबाद. पृ. 121-122, 233, चित्र सं0 121 7. वही, पृ० 233, चित्र सं० 120 8. द्र० डॉ० वासुदेव उपाध्याय : प्राचीन भारतीय मूर्ति विज्ञान, 1982, चौखम्बा विद्या भवन, वाराणसी, पृ० 35 9. वही, पृ० 134 10. वही, पृ० 170 11. हरिवंश पुराण, 66, 43-44, द्र० बी० सी० भट्टाचार्यः दी जैन ऑइकनोग्राफी, 1939, लाहौर, पृ० 92 12. आर० एस० गुप्ते : ऑइकनोग्राफी ऑफ हिन्दु बौद्धिस्थ ऐण्ड जैनः 1972, मुम्ई, पृ० 177-178 13. नरदत्ता, मानवी, अच्छुप्ता यक्षियों के नामोउल्लेख एक से अधिक जिनों के साथ किये गये हैं, द्र० डॉ० मारुतिनन्दन तिवारी, डॉ० कमलगिरी: मध्यकालीन भारतीय प्रतिमा लक्षण, 1997, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी, पृ० 269 14. वही, पृ० 269 15. वही, पृ० 269-270 16. वही, पृ० 270
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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