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________________ बुद्धायन में अभिव्यक्त बौद्ध धर्म एवं उसकी प्रासंगिकता 119 जे सम्मान राष्ट्र-अभिमाना। बेंचत करत घात छल नाना। जाहि शत्रु धन देइ अपारा। खरिदहिं भेद प्रगति-आधारा। अधम नीच अस पतिति परानी। वर्णत होत दुःखित कवि-वाणी।।" पूरे विश्व में चिकित्सकों को दूसरा भगवान माना गया है लेकिन चिकित्सक वर्ग भी आम जन को लूटने में लगे हुए हैं। उनकी चिकित्सीय कार्य कोई सेवा भावना से नहीं बल्कि उसके पीछे उनकी धन प्राप्ति की तृष्णा ही है। बंदी विश्व-चिकित्सक लोगू। रोग-निदान-हेतु न जोगू। किन्तु कार्य सेवा के सोई। समझत नाहिं स्वार्थ-वश होई। करहिं द्रव्य-मोचन व्यापारा। लूटहिं जन पीड़ित जग सारा। सकल समाज जाहि सम्माना। समुझत जग दूसर भगवाना ।। आज का समाज बुद्ध कालीन 'अंगुली माल' डाकू जैसे लोगों से भरा पड़ा है जो की शांति प्रिय लोगों को पीड़ित कर उन्हें दुःख एवं शोक पहुंचा रहे हैं। ऐसे लोग आम जन की इज्जत एवं धन दोनों को लूट रहे हैं। बिनु अपराध शांति-प्रिय लोगू। पीड़ित करहिं देंहि दुःख-सोगू। करहिं कुकर्म सदा संसारा। लूटहिं धन, इज्जत जन सारा।। इस प्रकार समाज में चारों तरफ अशांति भ्रष्टाचार एवं शोषण फैला हुआ है। मानव मूल्यों का अन्त हो चुका है। समर्थवान व्यक्ति निर्बलों का शोषण कर रहे हैं। सभी के पीछे अर्थ, शक्ति एवं सत्ता प्राप्त करने की तृष्णा है। जिसके पास जितना है वह और ज्यादा से ज्यादा प्राप्त करने की तृष्णा में डूबा हुआ है। विश्व में आण्विक अस्त्रों के निर्माण से उसके अस्तित्व पर ही प्रश्न चिह्न लग गया है। ऐसे में एक मात्र सहारा 'बुद्धं शरणं गच्छामि' ही है। यही कारण है कि स्व० कविवर अर्जुन सिंह अशांत ने आम लोगों के बीच बुद्ध चरित्र एवं दर्शन को अपनी कालजयी रचना बुद्धायन के माध्यम से लाया तथा इस अशांत जग को बुद्ध की शरण में जाने की प्रेरणा दी और उनका गुणगान किया। कविवर अशांत ने बताया है कि इस अशांत जग के दुःखों के कारण का
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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