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________________ बुद्धायन में अभिव्यक्त बौद्ध धर्म एवं उसकी प्रासंगिकता 117 यद्यपि युद्ध होत दुःखदायी। करत अशान्त मनुज समुदायी। पसरत शीत युद्ध संसारा। होत प्रभावित जग-व्यापारा। भौतिक स्वार्थ, शक्ति, प्रभुताई। कारण जन-संघर्ष लड़ाई।। आज आम आदमी आपसी प्रेम और भाईचारा के साथ रहना चाहता है। फिर भी कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए पुरे संसार को जाति भेद, रंग भेद और वर्ग भेद में बांट दिया है। फलतः आपसी ईर्ष्या, द्वेष घृणा समाज में फैल चुका है जो महान मानव मूल्यों का ह्रास कर रहा है। ऐसे में सत्य मार्ग जो सभी दु:खों को कम करने वाला है, उसको मनुष्य चारों तरफ ढूंढ रहा है। ऐसे में महात्मा बुद्ध को याद करना प्रासंगिक हो गया है। यद्यपि मनुज परम अभिलाषा। चाहत प्रेम, बंधु-विश्वासा। जाति, रंग अरु वर्ग-विचारा। बांटत जगत मनुज परिवारा। ईर्षा, द्वेष, घृणा, अपमाना। नासत मानव मूल्य महाना। सत्य-मार्ग कम करे कलेशू। ढूंढ़त आज मनुज सब देसू। जिन कठिन संघर्ष के बाद हमारे जन नायक जाति, रंग एवं वर्ग भेद को समाप्त कर प्रजातांत्रिक लोक तंत्र की स्थापना की, उसे आज के नेतृत्व वर्ग अपने स्वार्थ तथा सत्ता पर अधिपत्य जमाने के लिए जाति, धर्म, सम्प्रदाय के आधार पर अपने-अपने लिए दलों का निर्माण कर समाज को धर्म जाति और वर्गों में बांट दिए हैं। और उनके प्रतिनिधि बन कर इस संसार का आर्थिक शोषण करते हुए प्रजा पर भार बने हुए हैं। जे निज-दल, अरु जाति बल, प्रतिनिधि बन सरकार। करहिं अर्थ-शोषण-जगत, बनहिं प्रजा पर भार ।।16 यद्यपि धर्म का मूल मंत्र मानव कल्याण ही है फिर भी आज धर्म में बाह्याडंबर स्वार्थ, पैसा एवं राजनीति आदि का प्रवेश हो चुका है। धार्मिक लोग स्वार्थ एवं शक्ति के अनुसार धर्म का प्रचार कर रहे हैं। इन्होंने राजनीति से प्रेरित होकर धर्म का उपयोग कर मानव प्रेम एवं विश्व बंधुत्व के सिद्धान्त को घृणा एवं वैमनष्य में बदल दिया है, और धर्म के आधार पर समाज को बाट रहे हैं। इस सब के पीछे इनका मुख्य उद्देश्य भी 'अर्थ' ही है।
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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