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________________ 12 बौद्ध परम्परा में सारनाथ के स्तूप शोभा राम दुबे स्तूप सम्पूर्ण विश्व में श्रद्धा के प्रतीक के रूप में पूजित हैं। भगवान बुद्ध के अन्तिम समय में आनन्द के पूछने पर उन्होंने बताया कि जिस प्रकार चक्रवर्ती राजा के अस्थि अवशेषों पर स्तूप निर्मित किया जाता है उसी प्रकार तथागत के लिए भी स्तूप बनाना चाहिये ।' भगवान बुद्ध के इन वचनों से ज्ञात होता है कि भारत वर्ष में उनसे पहले भी मृतक के अस्थि अवशेषों पर स्मारक बनाने की परम्परा विद्यमान थी । मौर्यकालीन स्तूपों में सारनाथ का धर्मराजिका स्तूप सर्वप्रथम परिगणित है । इस काल की पालिश युक्त वेदिका से घिरे लघु आकार के एक अन्य स्तूप को विद्वानजन उद्देशिक स्तूप मानते हैं, जो सारनाथ का प्रथम स्तूप हो सकता है । सम्भवत: इस स्तूप का निर्माण बुद्ध के निर्वाण के बाद हुआ जिसमें बुद्ध के अवशेष संग्रहीत थे । 1794 ई० में जब काशी नरेश चेत सिंह के दीवान जगत सिंह ने यहाँ खुदाई करवायी तो इस स्तूप के गर्भ से एक गोलाकार पत्थर में रखी गई मंजूषा मिली थी, जिसमें संभवतः बुद्ध के अवशेष थे । इस मंजुषा को वरुणा नदी में विसर्जित कर दिया गया था जिसे डंकन ने प्राप्त करके भारतीय संग्रहालय के सुपुर्द कर दिया जहाँ ये आज भी सुरक्षित हैं। तत्पश्चात् धर्मराजितका स्तूप की खुदाई 1815 ई० में मैकेन्जी द्वारा कराई गयी थी । जिसमें प्राप्त वस्तुओं को कलकत्ता की एशियाटिक सोसाइटी को प्रदान कर दिया गया था । पुनः एमा राबर्ट्स द्वारा उत्खनन कराया गया जिसमें दो बुद्ध प्रतिमा मिली। इस स्तूप का व्यास 44' x 3" है तथा इसकी ईंटे 19--1/2" × 14-1/2” × 2 1/2 " तथा 16 1/2", 12 1/2 ", 31/2" आकार की हैं। "
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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