SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ii] राजस्थानी जैन साहित्य प्रकाश में आ जाय तो वह हमारी संस्कृति का परिचय दे सकने में समर्थ होगा। जैन रचनाकारों ने अपनी रचनाओं के विषय धर्म, दर्शन, तीर्थंकरों आदि के चरित्रों को बनाया । सैद्धान्तिक और साहित्यिक सभी विषयों को इन रचनाकारों ने बड़े कौशल के साथ निरूपित किया है। इनकी रचना शैली साहित्य जगत् में जैन शैली नाम से जानी जाती है । प्रस्तुत ग्रंथ के दसवें शोध लेख में इस शैली का यथा-प्रसंग उल्लेख किया गया हैं 1 सम्पूर्ण ग्रन्थ में राजस्थानी जैन साहित्य से संबंधित ग्यारह शोध-निबन्ध संकलित हैं। इनमें प्रथम आलेख राजस्थानी जैन साहित्य के स्वरूप को निरूपित करता है । राजस्थानी जैन रचनाकारों ने इन सभी विधाओं पर श्रेष्ठ रचनाओं का निर्माण किया । जैन धर्म श्रमण-संस्कृति का प्रमुख अंग है । इसी संस्कृति के समाज को चित्रित करता है इस संग्रह का दूसरा शोध- निबन्ध | राजस्थानी जैन साहित्य मूलतः धार्मिक साहित्य है, जिसका निर्माण जैन यतियों-मुनियों ने किया । इस साहित्य का मूल लक्ष्य जैन समाज में श्रमण-संस्कृति का प्रचार-प्रसार करना था, अतः लोक प्रचलित ढालों और रागों के माध्यम से उपासरों में यह साहित्य गाया और सुना जाता था । इन्हीं रागों का विवेचन तीसरे शोध आलेख में प्रस्तुत है । जैन भक्ति का मूल लक्ष्य शम की प्राप्ति है। इसकी उपलब्धि के लिए जैन रचनाकार सर्वप्रथम अपने नायक - तीर्थंकर ऋषि, चरितनायकों का श्रृंगार से सराबोर चित्रण करता है । तदुपरान्त उसमें वैराग्य उत्पन्न कर उसे संन्यास में अवगाहित करता है । इन्हीं प्रवृत्तियों से सम्बन्धित उनकी प्रेमख्यान रचनाएं है । ग्रंथ में सम्मिलित चौथा, छठा और दसवां शोध आलेख इसी ओर संकेत करते हैं । यद्यपि जैन धर्म अहिंसावादी है किन्तु शिव और शक्ति की अवधारणा को इस धर्म में पूर्ण स्वीकृति है। 24 तीर्थंकरों की अधिष्ठात्री देवियों के रूप में यहां 24 देवियों का उल्लेख हुआ है । इन देवियों से सम्बन्धित अनेक राजस्थानी रचनाएं मिलती हैं । इन्हीं सबकी विस्तार के साथ ग्रंथ में संकलित पांचवें शोध आलेख में चर्चा की गई है। इस सारस्वत रचना के आठवें और नवें आलेख का अपना महत्व है। आठवें आलेख में राजस्थानी काव्यशास्त्र से सम्बन्धित चर्चा की गई है और नवें अध्याय में राजस्थान के महत्वपूर्ण मध्यकालीन जनपद अहिच्छत्रपुर और वर्तमान नागौर मण्डल के जैन रचनाकारों एवं रचनाओं का ऐतिहासिक इतिवृत्त प्रस्तुत किया गया I
SR No.022847
Book TitleRajasthani Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmohanswarup Mathur
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy