SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 10 में धमालें गाने का रिवाज है । यह एक लोक परम्परा का शास्त्रीय राग है। जैन कवियों ने इस परम्परा में अनेक रचनाएं की है । यथा - आषाढभूति धमाल, आर्द्रकुमार, धमाल (कनकसोम)' नेमिनाथ धमाल (मालदेव) 2 इत्यादि । (9) चर्चरी (चांचरी) : धमाल के समान ही चर्चरी भी लोकशैली पर विरचित रचना है । ब्रजप्रदेश में चंग (ढप्प) की ताल के साथ गाये जाने वाले फागुन और होली के गीतों को चर्चरी कहते हैं । अतः वे संगीतबद्ध राग-रागनियों में बद्ध रचनाएं जो नृत्य के साथ गायी जाती है, चर्चरी कहलाती हैं । प्राकृत्तपैंगलम् में चर्चरी को छन्द कहा गया है । 3 राजस्थानी जैन साहित्य जैन साहित्य में चर्चरीसंज्ञक रचनाओं का आरम्भ 14 वीं शताब्दी से हुआ | 4 जिनदत्तसूरि एवं जिनवल्लभसूरि की चरचरियाँ विशेष प्रसिद्ध है, जो गायकवाड़ ओरियंटल सीरीज में प्रकाशित हैं । (10) बारहमासा : बारहमासा, छमासा, चौमासा - संज्ञक काव्यों में कवि वर्ष के प्रत्येक मास, ऋतुओं अथवा कथित मासों की परिस्थितियों का चित्रण करता है । इसका प्रमुख रस विप्रलम्भ शृंगार होता है । नायिका के विरह को उद्दीप्त करने के लिए प्रकृति-चित्रण भी इन रचनाओं में सघन रूप में मिलता है । मासों पर आधारित जैन साहित्य की यह विधा लोक-साहित्य से गृहीत है । बारहमासा का वर्णन प्रायः आषाढ मास से आरम्भ किया जाता है। जैन कवियों ने बारहमासा, छमासा अथवा चौमासा काव्य परम्परा के अन्तर्गत अनेक कृतियां लिखी है, यथा— नेमिनाथ बारहमासा चतुष्पदिका (विनयचंद्रसूरि) 5, नेमिनाथ राजिमति बारमास (चारित्र कलश) 1° जैन - रास, चौपाई, फागु-संज्ञक रचनाओं में इन कवियों ने यथा-प्रसंग बारहमासा आदि के मार्मिक चित्र प्रस्तुत किये हैं । कुशललाभ की माधवानल कामकंदला, 1. 2. 3. 4. 5. 6. युगप्रधान जिनचंद्र सूरि, पृ. 194-95 राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रंथों की खोज, भाग 2 हिन्दी छन्दप्रकाश, पृ. 131 जैन सत्यप्रकाश, वर्ष 12, अंक 6, (हीरालाल कावडिया का 'चर्चरी' नामक लेख) प्राचीन गुर्जर काव्य-संग्रह गुजराती साहित्य नो स्वरूपो, पृ. 279
SR No.022847
Book TitleRajasthani Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmohanswarup Mathur
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy