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________________ राजस्थानी जैन साहित्य कथात्मक भाग को पयार कहते हैं । बंगाली में भी यह एक छन्द है । पयार की उत्पत्ति संस्कृत के प्रवाद से मानी जाती है।' डा. मंजुलाल र.मजुमदार के अनुसार पवाड़ो वीर का प्रशस्ति काव्य है। रचनाबन्ध की दृष्टि से विविध तत्वो के आधार पर वे आसाइत के हंसावली प्रबन्ध, भीम के सदयवत्सवीर प्रबन्ध तथा शालिभद्रसूरि के विराट पर्व के अन्तर्गत मानते हैं।2 पवाड़ा के लिए प्रवाड़ा शब्द का भी प्रयोग मिलता है। इस प्रकार पवाड़ा या पवाड़ो का प्रयोग कीर्ति-गाथा, वीरगाथा, कथाकाव्य अथवा चरित काव्यों के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला शब्द है जिसकी व्युत्पत्ति संस्कृत के प्रवाद शब्द से मानी जा सकती है—सं.प्रवाद-प्रा.पवाअ = पवाड़अ-पवाड़ो। चारण साहित्य में इसका प्रयोग बहुधा वीर-गाथाओं के लिए हुआ है तथा जैन साहित्य में धार्मिक ऋषि-मुनियों के वर्चस्व को प्रतिपादित करने वाले ग्रंथों के लिए। जैन साहित्य में इस नाम की प्रथम रचना हीरानन्दसूरि रचित विद्याविलास पवाड़ा (वि.सं. 1485) को माना जाता है। ऐसी ही अन्य कृति है-बंकचूल पवाड़ो (ज्ञानचंद्र) । (6) ढाल : किसी काव्य के गाने की तर्ज या देशी को ढाल कहते हैं। 17 वीं शताब्दी से जब रास, चौपाई आदि लोकगीतों की देशियों में रचे जाने लगे तब उनको ढालबंध कहा जाने लगा। प्रबन्ध काव्यों में ढालों के प्रयोग के कारण ही इसका वर्णन प्रबन्ध काव्य की विधा में किया जाता है, अन्यथा यह पूर्णतः मुक्तक काव्य की विधा है। जैन-साहित्य में अनेक भजनों का ढालों में प्रणयन हुआ। मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने लगभग 2500 देशियों की सूची दी है। कुछ प्रमुख ढालों के नाम इस प्रकार हैं-ढाल वेली नी, ढाल मृगांकलेखा नी, ढाल संधि नी, ढाल वाहली, ढाल सामेरी, ढाल उल्लाला। 1. डा. हीरालाल माहेश्वरी-राजस्थानी भाषा और साहित्य, पृ. 236 2. गुजराती साहित्य नो स्वरूपो, पृ. 123, 125 3. मुंहता नैणसी री ख्यात, भाग 1, पृ.71 4. गुर्जर रासावली-एम.एस. यूनीवर्सिटी प्रकाशन 5. जैन गुर्जर कविओ, भाग-3, पृ.543-44 6. आनन्द काव्य महोदधि, मो.7 7. सं. भंवरलाल नाहटा-ऐतिहासिक काव्य-संग्रह
SR No.022847
Book TitleRajasthani Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmohanswarup Mathur
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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