SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजस्थानी जैन साहित्य 1. पद्य(क) प्रबन्ध काव्य-(अ) कथा चरित काव्य-रस, आख्यान, चरित्र, विलास, चौपाई, संधि, सम्बन्ध, प्रकाश, रुपक, गाथा इत्यादि । (आ) ऋतुकाव्य–फागु, धमाल, बारहमासा, चौमासा, छमासा, विरह, होरी, चौक, चर्चरी, झूलणा इत्यादि । (इ) उत्सवकाव्य–विवाह, मंगल, मूंदड़ी, गरबा, फुलड़ा, हालरियो, धवल, जन्माभिषेक, बधावा। (ख) मुक्तक काव्य-(अ) धार्मिक तीर्थमाला, संघ-वर्णन, पूजा, विनती, चैत्यपरिपाटी, ढाल, मातृका, नमस्कार, परभाति, स्तोत्र, निर्वाण, छंद, गीत आदि । (आ) नीतिपरक–कक्का बत्तीसी, बावनी, शतक, कुलक, सलोका, बोली, गूढ़ा आदि। (इ) विविध मुक्तक रचनाएँ—गीत, गज़ल, लावणी, हमचढ़ी, हीच, छंद, प्रवहण, भास, नीसाणी, बहोत्तरी, छत्तीसी, इक्कीसो आदि संख्यात्मक काव्य, शास्त्रीय काव्य। 2. गद्य टब्बा, बालावबोध, गुर्वावली, पट्टवाली, विहार-पत्र, समाचारी, विज्ञप्ति, सीख, कथा, ख्यात, टीका ग्रन्थ इत्यादि । जैन साहित्य की इन विद्याओं में से कतिपय का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है। पद्य काव्य (1) रासौ काव्य : रास, रासक, रासो, राइसौ, रायसौ, रायड़, रासु आदि नामों से रासौ नामपरक रचनाएं मिलती हैं । वस्तुतः भाषा के परिवर्तन के अनुसार विभिन्न कालों में ये नाम प्रचलित रहे। विद्वानों ने रासौ की उत्पत्ति विभिन्न रूपों में प्रस्तुत की है। आचार्य शुक्ल बीसलदेव रासो के आधार पर 'रसाइन' शब्द से रासो की उत्पत्ति मानते हैं। प्रथम इतिहास लेखक गार्सेदतासी ने 'राजसूय' शब्द से रासौ की उत्पत्ति मानी है।2 1. हिन्दी साहित्य का इतिहास, पृ. 32
SR No.022847
Book TitleRajasthani Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmohanswarup Mathur
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy