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________________ कम ॥ एवी बुद्धि कोश्क उपाजं, प्रोहीतनी लाज लोपाईं ॥ हो ला ॥ सु० ॥ ११ ॥ एम चिंतवी बुद्धि उपाश, प्रोहीतने कहे समजा ॥ पोहोर रात्रि जाये तेणी वार, श्रावजो थाहशियार ॥ होला ॥ सु० ॥१२॥ प्रोहीत थयो तव राजी. गयो निज घर मनमां गाजी॥कोटवाल पासे गश् नारी, तमे बो नगर तणा अधिकारी॥ होला ॥ सु० ॥१३॥ प्रोहीत वांडे मुजणुं प्रीत, तेनी कहेवा श्रावी ढुं रीत ॥सांजली कोटवाल तव बोले, नहीं नारी अवर तुम तोले होला ॥ १४ ॥ अमशुं जो राखशो राग, तो प्रोहीतनो शो लाग ॥ एम सांजली नारी कहे वात, बीजे पोहोरे आवजो रात ॥ हो ला ॥ १५ ॥ तिहांथी ग सचीवनी पासे, वात धुरथी कही नवासे ॥ तुमे नगर | तणा अधिकारी, कोटवालने राखो वारी ॥ हो ला ॥ सु० ॥ १६ ॥ कामांध थयो नारी देखी, कोटवालने नाखुं उवेखी ॥ मुज आगे बल यो एहनो, वयण मानशो मां कां कहेनो ॥ हो ला ॥सु॥१७॥ सचीव कहे मुज साथे, मेलो मेलव्यो जे जगनाथे॥ सुंदरी कहे त्रीजे पहोरे, आवजो थर थापणे तोरे ॥हो ला ॥ सु॥२०॥ राजा न|णी चाली श्रावी, वात धुरथी कही संजलावी ॥राजा पण रीज्यो जोइने, बीसो मां वयण कहे कोश्ने ॥ हो ला०॥सु०॥ १५॥ ढुंगाम तणो बुं राजा, कोण लोपे माहरी
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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