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________________ धर्मपरी० ॥ ४० ॥ ॥ १५ ॥ जान्हवी तीरे लाव्यो जाम, काम कुतूहल कीधो ताम ॥ गंगा राखी जटा मोकार, नारी बेशुं करे व्यापार ॥ १६ ॥ मंरुपकौशीक कहे वृतांत, शंकर न होये एहज संत ॥ सुर नर खेचर जाणे सहु, महादेव व्यनिचारी बहु ॥ १७ ॥ थापण ववीए ईश्वर पास, तो सही पामे पुत्री विषास ॥ दूध जलावीए जो मंजार, तो शंकर शुं करो व्यापार ॥ १८ ॥ तापस नारी बोली ताम, ईश्वर मोटो एहनो ठाम | छायाने मूकीशुं तिहां, विचार करीने बीजो जिहां ॥ १७ ॥ कामनी कहे सांजलो तुमे कंत, बाया ववीए पासे अनंत ॥ वासुदेव भुवन त्रय राय, सुर नर जेना सेव पाय ॥ २० ॥ तापस कहे सांजलरे नार, ए मोटो गोवालणीनो जार ॥ केम उवीए ए पासे बाल, सहु जाणे ए परस्त्री काल ॥ २१ ॥ तापसीए विनवीया कंत, स्वामि कथा कहो ते संत ॥ मंरुपकौशीक बोल्यो ताम, सांजलजो नारी अनिराम ॥ २२ ॥ ढाल बही बीजा खंगनी सारी, नेमविजय कड़े निरधारी ॥ श्रोता सांजलजो सहु कोय, वात कहुं जे आगल होय ॥ २३ ॥ उदा. रामती नगरी अबे, दामोदर त्यां राय ॥ नारी सोल सहस्रनो, अधिपति ते कदेवाय ॥ १ ॥ एक दिन दीठी गोवालणी, राधा जेनुं नाम ॥ मही मटुकी मस्तक खंग २ ॥ ४० ॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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