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________________ धर्मपरिचालीश्राजी, समत क्रीमारे काजः ॥ कुल पर्वत वाब्यो नदीजी, सर बह गिरि सीर ताजरे ॥ जा ध० ॥ ॥ गीत नृत्य गाता फरेजी, स्नान जोजन तंबोल ॥ हास्य विनोद ॥३॥ कौतक करेजी, एक एकनो राखे तोलरे ॥ ना ध० ॥ए ॥ एक दिन मनोवेग बोली-I7 उजी, सांजल ना तुं वात ॥ थापण कीजे पारजी, धर्म पापनी तांतरे ॥ ना० ध ॥ १० ॥ सारनूत संसारमांजी, जैनधरमनोरे जोग॥जो तमे ते पालो सहीजी,पामशोy बोहोलो नोगरे ॥ना ध॥ ११॥ पवनवेग एम सांजलीजी, बोल्यो नहीं मुख वाण जाणे मनमां प्रीतमीजी, तुटे बोत्ये ताणरे ॥ ना ध॥ १२॥ मनोवेग मन चिंतवेजी, बुद्धि करुं को देव ॥ मिथ्या धंधे ए पड्योजी, नवी माने जिनदेवरे ॥ नाण ध॥ १३ ॥ विमाने बेसी एकलोजी, आकाशमारग जाय ॥अढीलीप मांही फिरेजी जात्रा करे जिनरायरे ॥ ना ध० ॥ १४ ॥ अनुक्रमे फरतो श्रावीजी, मालव देश मोकार ॥ उजेणीने परिसरेजी, विमान थंन्यु तेणी वाररे॥ ना ध० ॥१५॥ वासुपूज्य मुनि केवलीजी, दीग त्रिजुवन वाम ॥ हेगे श्राव्यो उतरीजी, वांद्या मुनिने तामरे ना० ॥ ध॥ १६ ॥ धर्मकथा मुनिवर कहीजी, सांजली हरख्यो राय ॥ श्रावकव्रत सुधां लहीजी, वली वली प्रणमे पायरे॥ना ध० ॥१७॥ कर जोडी करे विनतिजी, ॥३॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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