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________________ दोषरे ॥ केम परहरशो श्रमने कहो, कोइ न करे तुम रोषरे ॥ सू० ॥ ॥ ॥ मनोवेग कहे सांजलो, विप्र सहुको सुजाणरे॥ वेद पुराणमां जे कद्यु, तेहवी बोलु अमे वाणरे ॥ ७॥ नर्मदा नीर वहे निरमधं, ते कांठे वन सोहे साररे ॥ तापसी पनी तिहां अडे, तापस तपसी अपाररे ॥ सू० ॥ ए॥ मंडपकोशीक तप करे, अहोरात्रि जपे हरि रामरे॥ तापस सर्व बहु तप तपे, स्नान मज्जन रेवा गमरे ॥ सू० ॥ १० ॥ पंचाग्नि धुम्रपानशुं, कंद मूल नदण तेहरे ॥ मोटी जटा मस्तक धरे, पांच इंडि दमे देहरे ॥ सू० ॥११॥ सोमदत्त जजमान नलो, तपसीयांने दीये दानरे ॥ एकदा तापसी नोतर्या, तेड्या सहु दे मानरे ॥ सू० ॥१२॥ विविध प्रकारे नोजन कर्या,बेसणां मांड्यां हारवंधरे॥थाल कचोलां मांड्यां घणां, शाक पक्वान्न सुगंधरे ॥ सू० ॥ १३ ॥ मंझपकोशीक देखीने, बीजे तापसे निंदा कीधरे ॥ थाल मूकीने चाल्या सहु, कोपे दंताधर लीधरे ॥ सू० ॥ १४ ॥ धाइ जजमाने पूर्वीश्रा, जमवा बेग उठ्या केमरे ॥ शुं अपराध अमारडो, काज विणास्यो मुज तेमरे ॥ सू० ॥१५॥ वृद्ध तापस तिहां बोलीया, सांजलो सोमदत्त देवरे ॥ मंडपकोशीक तमे नोतर्या, पंक्तिमा बेसाड्यो खेवरे॥सू॥१६॥मंम्पकोशीके पूबीजं, में शुं कीधो अपराधरे ॥ दोष -
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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