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________________ खंड ३ जो. उदा. मनोवेग कहे सांजखो, पवनवेग तुम जाय ॥ विप्र पुराणनी वारता, पूर्वापर चित्त लाय ॥१॥ विरोध घणां हुं दाखवू, अघटतां असत्य तेह ॥ सांजलतां थाशो खुशी, एमां नही संदेह ॥२॥ पवनवेग कहे तुमे, जो शास्त्र विचार ॥ शिघ्र नाश् मुज दाखवो, विनोद तणो जंडार ॥३॥ व ढाल पदेली. खाख चोराशी रथ जला ए, तेहना वृषन धोरी सुकुमाल-ए देशी. विद्या प्रचावे बेहु जणे ए, नील तणुं रूप कीध ॥ साजन सहु सांजलो ए ॥ कृष्ण वरण बीहामणा ए, धनुषबाण कर लीध ॥सा० ॥१॥ मस्तक केश ने बाबरा ए, चोपमा नाक वली मुख॥ सा॥ रातां नेत्र गुंजा समां ए, दांत लांबा हो ॥ सा ॥२॥ कठिण हैया करकस देहीए, पुफ वेला शिरनार ॥ सा॥ मयूर पिंड घरेणां धर्या ए, लोह कंकण गुंजाहार ॥ सा ॥३॥ विद्याबल मंजार कर्यो ए, घट मांही ले धर्यो
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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