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धर्मपरी ॥ ३॥
अवतर्या, हिरणकश्यपनो नाश ॥ स ॥ पांचमे वामन रूप लीयो, बलि चाप्यो नूमिखम र पास ॥स॥सू०॥ ॥ फरसराम बहे सुणो, सहसार्जुन फेड्यो गम ॥ स०॥ सातमे
राम हुवो नलो, रावण टाल्यु नाम ॥ स० ॥ सू० ॥ ॥ केशव थाम्मे अवतर्यो, जक रासिंध हण्यो कंस ॥ स ॥ अढार कोणी दल रण इण्यो, कय कर्यो जादव वंश | | सासूणाए॥ नवमो बोध जवांतरे, म्लेच्छ मांही कीधो व्याप स॥ दशमे कलंकी| राजी, जननी चंमालणी हिज बाप ॥ स० ॥ सू० ॥ १० ॥ एकाकार करी घj, श्रच-|| रावे अनाचार ॥स०॥ देव निरंजन जे हवा, ते केम लीये अवतार ॥सणासू॥ ११॥all घृत जेम ध ते नवि थाये,सिद्ध संसारी न होय ॥सापाको धान मही नवि उगे, सिध्यो जीव तेम जोय ॥ स० ॥ सू० ॥ १५ ॥ पाषाण मथी सोनुं काढीयु, ते केम पत्थर थाय ॥ स॥ कर्म हणी जे सिक हुवा, ते केम पुद्गल पाय ॥सासू ॥१३॥ देव दयाल नर जे कह्या, केम करे जीव संहार ॥ स ॥ राग शेष मद मच्छर नहीं, दैत्यने किम ते मार॥सणासू॥ १४ ॥ नारी विजोग पड्यो रामने, सीता सीता पोकार ॥ स ॥ नर तरु पशुने पूढे घj, दरशन होशे मुज नार ॥सणा सू॥ १५ ॥ सर्वज्ञ ते जाणे सहु, पूजे बीजाने केम ॥ स॥ चौद नूवन मुख मांहि , चढे केम लंका जेम