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________________ धणीजी, सेवकने सुख थाय ॥ वामन रूप करी थावीयाजी, जय जय हुवा जग मायाला सु०॥तुव्या तो आपोदामोदराजी, सेवावरती था सार ॥ मुज किंकरपणुं तमे करो जी, काठी धरी रहो बार ॥सु०॥१॥ महा विष्णु सेवक थयाजी, काठी धरी रह्या हाथ॥ वचन बांध्या कुःखीथा थयाजी, कष्ट पाम्या जगनाथ ॥सू० ॥ ११॥ दीवालीए गण तणोजी, बलि राणो करे लोक ॥ गोयर घरघर थापीएजी, कृष्ण तणां करी फोक ॥ सू० ॥ १५ ॥ वेद पुराणे कथा कहीजी, विप्र जाणो तुमे नेद ॥ खोटुं के साचुं होयेजी, कहो विचारी वेद ॥सू॥ १३॥ विप्र वचन वलतुं कहेजी, खोटुं नहींय खगार ॥ वेद पुराणे नाखीयोजी, सत्य वचन तुम सार ॥ सू० ॥ १४ ॥ मनोवेग वली बोलीयोजी, सांजलो विप्र सुजाण ॥ लोककथा कहं एक जलीजी, मधरी सुलखित वाण ॥ स. ॥ १५ ॥ दक्षिण देश माहे जलोजी, गाम ते वसे कच्छ नाम ॥ श्रीपुरजी सुचिकार ने तिहांजी, नामो सुत स काम ॥ सू० ॥ १६ ॥ श्रीपुरजी दरिलक्त हवेजी, विष्णु देहरे नित्य जाय ॥ पंचामृत थाली करीजी, तेह विण अन्न न खाय ॥ सू० ॥ १७ ॥ नाश्रीपुरजी परगाम चालतांजी, नामा सुतने देश शीख ॥ दामोदर देरे जाजे सहीजी, जेम तुज टले जवनीख ॥ सू०॥ १७ ॥ पंचामृत शोजन देजोजी, एम कही चाख्यो ।
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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