SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्मपरी० ॥ १७ ॥ | बेठा त्यांहिं ॥ रास परोणो कर ग्रही, हवे रथ खेडे श्रांहि ॥ ४ ॥ कौरव सेना उपरे, मार पमी तेणी वार ॥ पांच पांव जय पामीया, जगमां जस विस्तार ॥ ५ ॥ जीती निज घर श्रावीया, पहोता निज निज ठाम ॥ कथा पुराणे ते कही, मनोवेग कहे तमाम ॥ ६ ॥ ब्राह्मण सढुको सांजलो, पांडव दूत मोरार ॥ गामीत करम कर्यो सही, नीच करम श्राचार ॥ ७ ॥ नारायण रुखमणी बने, जोतरी रथ पुरवासाय ॥ चाबक चोडे तेहने, कीधां कांणां ताय ॥ ८ ॥ विश्वलोक विट्ठल तषां सुर कृषि पूजे पाय ॥ रथ खेडे ते केम जणी, विप्र विचारो कांय ॥ ए ॥ ढाल, गरमी. इमर यांबा यांबलीरे, इमर दामिम भ्राख - ए देशी. विप्र विचारो तुमे जलारे, विष्णु विगोव्यो अपार ॥ वेद पुराणे जे कह्युंरे, सत्य वचन कहुं सार ॥ सजन जन मनशुं करोरे विचार ॥ ए यांकणी ॥ १॥ जश्मांगद कृषि तप करेरे, ईश्वरनुं धरे ध्यान ॥ पंचाग्नि साधी खरीरे, बार वरस गयां मान ॥ स०॥२॥ वृषन चड्या ईश उमीयारे, मारग दीठो ताम ॥ गौरी पूढे ईश्वर जणीरे, ए ध्याये केहनुं नाम ॥ स० ॥ ३ ॥ महादेव कड़े सुप नारी तुंरे, मुजने ध्याये सहु लोक ॥ खंग १ ॥ १७ ॥ 1
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy