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________________ धर्मपरी० ॥ १६ ॥ राज पाले गुण धार ॥ २ ॥ दुर्योधन राज करे तिहां, कौरव शत जाइ साथ ॥ राज्यद्वेष आणे घणा, पांगवशुं लीए बाथ ॥ ३ ॥ एक वार कूम कपटे करी, जुवटे दायों | देश ॥ देशोटो बार वरस तणो, चाल्या धरी द्विजवेष ॥ ४ ॥ वैराट देशमां जइ रह्या, वैराट ती करे सेव ॥ गोकुल वाल्यो कौरवे, संग्राम कीधो तिथे खेव ॥ ५ ॥ पांव द्वारिकापुरी गया, नारायण भेट्या ते ॥ कृष्णे काज विमासीडं, मान द‍ राख्या गेट् ॥ ६ ॥ स्नेह धरी परणावीया, सुनद्रा अर्जुन ताम ॥ सुख जोगवे पांगव तिहां, सेव करे कृष्ण राम ॥ ७ ॥ श्ररजुने तव विनवीया, दामोदर ते राय ॥ काज करो तुम श्रम तणां भूतपणुं धरी काय ॥ ८ ॥ हस्तीनागपुर जाय, जांजवो कौरव धीश ॥ नगर पांच श्रापुं तुमने, यानंद घरी नामो शीश ॥ ए ॥ सेवावरती थइ रहो, जाइ कहो तुम देव || कर जोमी कहे त्रीकमो, काम करशुं मे देव ॥ १० ॥ डूतप लइ चालीया, हस्तीनागपुर पोत्या कान ॥ दासीपुत्र विदुर घरे, कृष्ण गया दीघां मान ॥ ११ ॥ श्रादर तेणे दीधा घणा, शाक ने जोजन दीध ॥ अवसर जोइ नेटणं, दुर्योधन राजानुं कीध ॥ १२ ॥ कौरवे मान दीधां घणां, पूब्धुं केम थाव्या कान ॥ नारायण तव बोलीया, सुणो वयष अमारां तान ॥ १३ ॥ डूत थइ अमे श्रवीया, खंग १ ॥ १६ ॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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