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________________ धर्मपरी खंमए ॥१६॥ गु०॥४॥ पमिलेहण नित्ये विधे, करे प्रमाद निवारीरे ॥ काळे शुद्ध क्रिया करे, पन्नर हायाग निवारीरे ॥ गु०॥५॥ धर्म तणां उपग्रण धरे, संयम पालवा काजेरे ॥ नोंय जो पगलां जरे, लोक विरुरूथी लाजेरे ॥ गु० ॥६॥ वस्त्रादिक शुद्ध एषणी, व्ये देखी सुविशेषरे ॥ काळ प्रमाणे खप करे, झूषण टलता देखेरे ॥ गु० ॥७॥ कुषी संबल जे कह्या, सानिध्य केमही न राखेरे ॥ दे उपदेश यथास्थिते, सत्य वचन मुख नाखेरे ॥ गु० ॥ ॥ तन मेला मन उजला, तप करी दीण देहरे ॥ बंधन बेदी करी, विचरे जन निसनेहीरे ॥ गु० ॥ ए ॥ एहवा गुरु जो करी, आदरीए शुन नावेरे ॥ बीजो तत्त्व सुगुरु तणो, जगमां एम कहावेरे ॥ गु० ॥ १० ॥ नवमा खेमनी नाए कही, ढाल चोथी ए वारुरे ॥ रंगविजय शिष्य एम कहे, नेमविजय श्रोता सासरे ॥ गु० ॥ ११॥ ढाल पांचमी. करम न बूटेरे प्राणीया-ए देशी. नवसायर तरवा नणी, धरम करे सारंज ॥ पथ्थर नावेरे बेसणे, तरवो समुख | १ कर्मादान. ॥१६॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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