SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 334
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्मपरी ॥ १६६॥ ज० ॥ ६॥ गत थागत सहु जीवनी, देखे लोकालोक ॥ जिन देखे सवि वस्तुने, खमए केवलझाने अलोक ॥ ज० ॥७॥ मूरत श्री जिनराजनी, समतारस जंडार ॥ शीतल नयण सोहामणां, नहीं वांक लगार ॥ ज० ॥ ॥ हसित वदन हरखे हीयो, देखी श्री जिनराय ॥ सुंदर बबी प्रजु देहनी, शोजा वरणीन जाय॥ज०॥ ए॥अवर तणी एहवी बबी, कीहांए न दीसंत ॥ देवतत्त्व एम जाणीए, सहु सुणजो संत ॥ ज० ॥१०॥ नवमा खंड तणी कही, ढाल बीजी ए सार ॥ रंगविजय शिष्य नेमने, होजो जय-16 जयकार ॥ ज०॥ ११ ॥ ढाल त्रीजी. यत्तनी देशी. श्री जिनवर प्रवचन जाख्या, मांही कुगुरु तणा गुण दाख्या ॥पासबादिक पंचेश्, पाप श्रमण कह्या पंचे॥१ ॥ गृहीनां मंदिरथी श्राणी, आहार करे जात पाणी॥ |सुश् जंघे जे निशदिस, मरमादि विसवा वीस ॥२॥क्रिया न करे केणे वार, पमिकमj ॥१६६॥ सांज सवार॥न करे सूत्र थरथ सजाय, विकथा करतां दिन जाय ॥३॥ घृत पूध दहीं अप्रमाण, खाये न करे पच्चरकाण ॥झान दर्शन ने चारित्र, मूकी दीधां ते सुपवित्र॥४॥सु
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy