SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 318
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्मपरी ॥२५ ॥ १६ ॥ श्रापमा खेमनी ढाल, सातमी कही निपट रसाल हो ॥ ना०॥ रंगविजयनोखंमत शिष्य, नेम प्रणति करे निशदिस हो ॥ ना० ॥ १७ ॥ उदा. हवे कनकमाला प्रते, पूजे शेठ विचार ॥ तुज समकितनी वात कदे, रे गुणवंती |नार ॥ १॥ ते बोली पीउ सांजलो, सूर्यपुरे नरपाल ॥ नूपति शेठ समुदत्त, सागरदत्ता सुकुमाल ॥२॥ तेहनी कुखे उपनो, सागर नामे कुमार ॥ जिनदत्ता बेटी वली, IN मातपिता सुखकार ॥३॥ शेठ कोसंबी नगरने, जिनदत्ते परणी तेह ॥ सागर करम वशे करे, व्यसन सातशुं नेह ॥४॥ वचन न माने बापर्नु, घणी वार तलार ॥ कानाली मूक्यो तेहने, गणी शेठ सुत सार ॥ ५॥ श्रारदक वली एकदा, काली सोंप्यो राय ॥ कोमी जतन जो कीजीए, मूख्य खन्नाव न जाय ॥६॥ तेडी तेदना तातने, राजा नाखे एम ॥ काढ एहने घर थकी, जो तुं वांडे खेम ॥७॥ | ॥२५ ॥ उर्जनजनसंसर्गात् । साधोरपि जवंति विपदो वा ॥ दशमुखकृतेऽपराधे । वारिधिरपि बंधनं प्राप्तः ॥१॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy